ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''हां पूनम! बच्चे के लिए प्यार से भेजे गए ये खिलौने रख लो। आंटी का नहीं तो इनका ही दिल रख लो जो इतनी दूर उठाकर लाए हैं।''
बनवारी ने अंजना की निगाहों में लावा के समान उबलता क्रोध देखकर तुरन्त कहा-''होटल पालीटन में ठहरा हूं। मिलना हो या कोई संदेशा भेजना हो आंटी को तो टेलीफोन कर लेना। कमरा नम्बर 21 है।''
''मुझे कुछ नहीं कहना है।'' अंजना उबल पड़ी।
बनवारी निराश मुद्रा बनाए लौटने लगा तो कमल ने टोक दिया-''आप जा रहे हैं क्या?''
''जी।'' वह चौंककर रुक गया-''अब तो जाना ही होगा।''
''चाय तो पीते जाइए।''
''नहीं साहब, यह न होगा हमसे। हम छोटे जरूर हैं लेकिन इतने गिरे हुए नहीं हैं कि जिस लड़की को अपने मुहल्ले से दुल्हन बना के भेजा, उसी के घर का पानी पी लें।''
''लेकिन आप...''
''देखने में आधुनिक लगता हूं, पालीटन होटल में ठहरता हूं, लेकिन विचार तो पुराने हैं।''
बनवारी की इस बेतुकी बात पर कमल को हंसी आ गई। इससे पहले कि वह कुछ और कहता बनवारी नमस्ते कहता हुआ हाल से बाहर निकल गया।
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