ई-पुस्तकें >> कह देना कह देनाअंसार कम्बरी
|
3 पाठकों को प्रिय 278 पाठक हैं |
आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
६३
दिन भर की उदासी का यूँ जश्न मनाते हैं
दिन भर की उदासी का यूँ जश्न मनाते हैं
हर शाम ढले हम भी कुछ ख़्वाब सजाते हैं
हम प्यास के मारे तो मल्हार ही गाते हैं
तपते हुये सहरा में सावन को बुलाते हैं
इतिहास बताता है पत्थर ही मिले उनको
जो लोग ज़माने को आईना दिखाते हैं
मायूस दरख़्तों पर आ जाती है कुछ रौनक़
जब शाम ढले पंछी घर लौट के आते हैं
क्या हो गया नदी से लाशें ही निकलती हैं
मछली के लिये जब भी हम जाल बिछाते हैं
ताक़त भी है, हिम्मत भी तलवार उठाने की
फिर भी दुआ की ख़ातिर हम हाथ उठाते हैं
मज़हब ही सिखाते हैं आपस में गले मिलना
मज़हब ही हर इक दिल में दीवार बनाते हैं
|