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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580
आईएसबीएन :9781613015803

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४३

राहज़न आदमी, राहबर आदमी


राहज़न आदमी, राहबर आदमी
कैसे-कैसे दिखाता है फ़न आदमी

अपने सीने में लेकर जलन आदमी
फिर रहा है चमन-दर-चमन आदमी

आख़री साँस तक पूरे होंगे नहीं
देखता ही रहेगा सपन आदमी

सुब्ह से शाम तक, शाम से सुब्ह तक
बाँधे रहता है सर से कफ़न आदमी

‘क़म्बरी; की तरह कोई मिलता नहीं
यूँ तो लाखों मिले बासुख़न आदमी

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