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कह देना
कह देना
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9580
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आईएसबीएन :9781613015803 |
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3 पाठकों को प्रिय
278 पाठक हैं
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आधुनिक अंसार कम्बरी की लोकप्रिय ग़जलें
३६
लाख छुप-छुप के करो तुम गुनाह परदे में
लाख छुप-छुप के करो तुम गुनाह परदे में
देखती रहती है कोई निगाह परदे में
आओ चौराहे की क़ंदील जलायें चल कर
ये शहर डूब गया है सियाह परदे में
उसके दुख-दर्द की दुनिया को कोई फ़िक्र नहीं
घुट के रह जाती है मुफ़लिस की आह परदे में
किस तरह देश के भूगोल को बाँटा जाये
कुर्सियाँ करने लगीं फिर सलाह परदे में
मुझको हर एक मुसीबत से बचा लेता है
कोई रहता है मेरा ख़ैर-ख़्वाह परदे में
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