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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580
आईएसबीएन :9781613015803

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२९

तुम्हारी बज़्म में अब किसका इन्तिख़ाब करूँ


तुम्हारी बज़्म में अब किसका इन्तिख़ाब करूँ
ख़तीब किसको बनाऊँ, किसे ख़िताब करूँ

कहूँ वो शेर के दुनिया में इन्क़लाब करूँ
नक़ाबपोश ज़माने को बेनक़ाब करूँ

चराग़ तू करे रौशन, मैं माहताब करूँ
न तू हिजाब करे और न मैं हिजाब करूँ

जहाँ से चाँद नज़र आये सारी दुनिया को
बताओ कौन से रुख़ पर मैं आफ़ताब करूँ

उसे तो ज़र्रा-भर एहसास तक नहीं होता
उसे मैं ख़ार करूँ पेश या गुलाब करूँ

लगी है आग दुकानों में, जेब ख़ाली है
कहाँ से अपनी ज़रूरत को दस्तियाब करूँ

ख़ुदाये-पाक ने बन्दों से बार-बार कहा
दुआयें दिल से अगर हों तो मुस्तिजाब करूँ

रहेंगे प्यास के मारे तो प्यास के मारे
उन्हें मैं आब करूँ पेश या शराब करूँ

सजा के एक ग़ज़ल ‘क़म्बरी’ भी अच्छी सी
तेरी नशिस्त को हर रुख़ से कामयाब करूँ

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