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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580
आईएसबीएन :9781613015803

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२७

तुमने तन या धन देखा है


तुमने तन या धन देखा है
हमने केवल मन देखा है

धीर धरे धरती के आगे
झुकते हुये गगन देखा है

जीवन की सीधी राहों का
क़दमों से अनबन देखा है

उसको अपना बना न पाये
करके लाख जतन देखा है

तेरी ही तस्वीर दिखी है
हमने जब दर्पन देखा है

बात बिना ही वो क्यूँ मुझसे
रखता बहुत जलन देखा है

उसने अपनी मर्यादा का
होते हुये हनन देखा है

दौलत के आगे दुनिया को
करते हुये नमन देखा है

तुमने देखा फ़नकारों को
हमने उनका फ़न देखा है

शायर अपनी ही ग़ज़लों में
रहता बहुत मगन देखा है

हमने तरह के इस मिसरे में
उसका पावन मन देखा है

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