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कह देना

अंसार कम्बरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :165
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9580
आईएसबीएन :9781613015803

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१५

मैं चलने को तय्यार हूँ ले चल तू जहाँ भी


मैं चलने को तय्यार हूँ ले चल तू जहाँ भी
अब तेरे हवाले है मेरा जिस्म भी, जाँ भी

घबराओ न हो जायेगा बस्ती में उजाला
छटने को अँधेरा भी है, बादल भी, धुआँ भी

नजरें न उठा और न नजरों को झुका तू
कहते हैं यही, होती है आँखों में ज़बाँ भी

तुझको तो फ़क़त इतना ही मैं जान सका हूँ
रहता भी नहीं सामने लेकिन है अयाँ भी

हम अपनी अना लेके अगर बैठ गये तो
प्यासे के करीब आयेगा एक रोज़ कुआँ भी

साये में इत्मेनान से बैठे रहो न तुम
कुछ देर में आ जायेगी वो धूप यहाँ भी

ये ज़िन्दगी तो ‘क़म्बरी’ मौसम की तरह है
आई अगर बहार तो आयेगी ख़िज़ाँ भी

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