ई-पुस्तकें >> जलती चट्टान जलती चट्टानगुलशन नन्दा
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हिन्दी फिल्मों के लिए लिखने वाले लोकप्रिय लेखक की एक और रचना
‘हाँ – हाँ तुम्हारे मैनेजर की।’
‘हरीश की?’
‘हाँ... तो क्या तुम्हें मालूम नहीं, आज सुबह से बधाई की तारें देते-देते तो कमर दोहरी हो गई है।’
‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। इतना अंधेर...।’
‘यह क्या कह रहे हो राजन। शादी और अंधेर...।’
अभी स्टेशन मास्टर के मुँह से ये शब्द निकले ही थे कि फायरमैन कमरे में आया और बोला -‘डॉन मैसेन्जर आ गया।’
स्टेशन मास्टर ने तुरंत ही मेज पर पड़ी झंडियाँ उठाई और बाहर चला गया। राजन वहीं बुत बना खड़ा रहा। कहीँ उसके साथ छल तो नहीं हुआ – यह सोच वह काँप उठा, फिर धीरे-धीरे पग बढ़ाता बाहर ‘प्लेटफॉर्म’ पर आ गया। चारों ओर धुंध ऊपर उठने लगी। प्लेटफॉर्म पर खड़ी गाड़ी के डिब्बे साफ दिखाई देने लगे। इंजन की सीटी बजते ही गाड़ी ने प्लेटफॉर्म छोड़ दिया। ज्यों-ज्यों गाड़ी की रफ्तार बढ़ती गई, राजन के दिल की धड़कन भी तेज होती गई। वह चुपके से स्टेशन मास्टर के पास आ खड़ा हुआ जो गाड़ी को ‘लाइन क्लीयर’ दे रहा था। जब गाड़ी का अंतिम डिब्बा निकल गया तो राजन बोला - ‘बाबूजी, मैं ‘वादी’ जा रहा हूँ।’
‘इस समय? तुम्हारे होश ठिकाने हैं।’
‘मुझे अवश्य जाना है... मैं आपको कैसे समझाऊँ।’ वह बेचैनी से बोला।
‘सड़क बर्फ से ढकी पड़ी है। रिक्शा जा नहीं सकता और कोई रास्ता नहीं। जाओगे कैसे?’
‘चलकर।’
‘पागल तो नहीं हो गए हो, इस अंधियारी रात में जाओगे? अपनी न सही अपनी बूढ़ी माँ की तो चिंता करो – वह किसके आसरे जिएगी?’
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