ई-पुस्तकें >> ज्ञानयोग ज्ञानयोगस्वामी विवेकानन्द
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स्वानीजी के ज्ञानयोग पर अमेरिका में दिये गये प्रवचन
द्वैतवाद केवल एक अवस्था है, लेकिन अद्वैतवाद अन्त तक ले जाता है। पवित्रता ही मुक्ति का सब से सीधा मार्ग है। जो हम कमायेंगे, वही हमारा है। कोई शास्त्र या कोई आस्था हमें नहीं बचा सकती। यदि कोई ईश्वर है तो 'सभी' उसे पा सकते हैं। किसी को यह बताने की आवश्यकता नहीं होती कि गर्मी है, प्रत्येक उसे स्वयं जान सकता है। ऐसा ही ईश्वर के लिए होना चाहिए। वह सभी की चेतना में एक तथ्य होना चाहिए।
हिन्दू 'पाप' को वैसा नहीं मानते, जैसा कि पाश्चात्य विचार से समझा जाता है। बुरे काम पाप नहीं हैं, उन्हें करके हम किसी शासक को (परम पिता को) अप्रसन्न नहीं करते, हम स्वयं अपने को हानि पहुँचाते हैं और हमें दण्ड भी सहना होगा। आग में किसी का अँगुली रखना पाप नहीं है, किन्तु जो कोई रखेगा, उसे उतना ही दुःख उठाना होगा। सभी कर्म कोई न कोई फल देते हैं और 'प्रत्येक कर्म कर्ता के पास लौटता है।'
एकेश्वरवाद का ही पूर्ववतीं रूप त्रिमूर्तिवाद (जो कि द्वैतवाद है अर्थात् मनुष्य और ईश्वर सदैव के लिए पृथक्) है। ऊपर (परमार्थ) की ओर पहला कदम तब होता है, जब हम अपने को ईश्वर की सन्तान मान लेते हैं और तब अन्तिम कदम होता है, जब हम अपने को केवल एक आत्मा के रूप में अनुभव कर लेते हैं।
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