लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

305 पाठक हैं

संवेदनशील प्रेमकथा।


सुधा अब भी काँप रही थी। चन्दर की आवाज में अभी भी वह मुलायमियत नहीं आ पायी थी। वह पानी लाने के लिए उठी।

“नहीं, तुम कहीं जाओ मत, तुम बैठो यहीं।” उसने उसकी हथेली अपने माथे पर रखकर जोर से अपने हाथों में दबा ली और कहा, “सुधा!...”

“क्यों, चन्दर!”

“कुछ नहीं!” चन्दर ने आवाज दी लेकिन लगता था वह आवाज चन्दर की नहीं थी। न जाने कहाँ से आ रही थी...

“क्या सिर में दर्द है? बिनती, एक गिलास पानी लाओ जल्दी से।”

सुधा ने आवाज दी। चन्दर जैसे पहले-सा हो गया-”अरे! अभी मुझे क्या हो गया था? तुम क्या बात कर रही थीं सुधा?”

“पता नहीं तुम्हें अभी क्या हो गया था?” सुधा ने घबरायी हुई गौरेया की तरह सहमकर कहा।

चन्दर स्वस्थ हो गया-”कुछ नहीं सुधा! मैं ठीक हूँ। मैं तो यूँ ही तुम्हें परेशान करने के लिए चुप था।” उसने हँसकर कहा।

“हाँ, चलो रहने दो। तुम्हारे सिर में दर्द है जरूर से।” सुधा बोली। बिनती पानी लेकर आ गयी थी।

“लो, पानी पियो!”

“नहीं, हमें कुछ नहीं चाहिए।” चन्दर बोला।

“बिनती, जरा पेनबाम ले जाओ।” सुधा ने गिलास जबर्दस्ती उसके मुँह से लगाते हुए कहा। बिनती पेनबाम ले आयी थी-”बिनती, तू जरा लगा दे इनके। अरे खड़ी क्यों है? कुर्सी के पीछे खड़ी होकर माथे पर जरा हल्की उँगली से लगा दे।”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai