ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“बैठाओ उन्हें, हम आते हैं।” सुधा ने कहा और जल्दी-जल्दी खाना शुरू किया और जल्दी-जल्दी खत्म कर दिया।
बाहर जाकर उसने देखा तो नीलकाँटे के झाड़ से टिकी हुई एक बाइसिकिल रखी थी और एक ईसाई लड़की लॉन पर टहल रही है। होगी करीब चौबीस-पच्चीस बरस की, लेकिन बहुत अच्छी लग रही थी।
“कहिए, आप किसे पूछ रही हैं?” सुधा ने अँग्रेजी में पूछा।
“मैं डॉक्टर शुक्ला से मिलने आयी हूँ।” उसने शुद्ध हिन्दुस्तानी में कहा।
“वे तो बाहर गये हैं और कब आएँगे, कुछ पता नहीं। कोई खास काम है आपको?” सुधा ने पूछा।
“नहीं, यूँ ही मिलने आ गयी। आप उनकी लड़की हैं?” उसने साइकिल उठाते हुए कहा।
“जी हाँ, लेकिन अपना नाम तो बताती जाइए।”
“मेरा नाम कोई महत्वपूर्ण नहीं। मैं उनसे मिल लूँगी। और हाँ, आप उसे जानती हैं, मिस्टर कपूर को?”
“आहा! आप पम्मी हैं, मिस डिक्रूज!” सुधा को एकदम खयाल आ गया-”आइए, आइए; हम आपको ऐसे नहीं जाने देंगे। चलिए, बैठिए।” सुधा ने बड़ी बेतकल्लुफी से उसकी साइकिल पकड़ ली।
“अच्छा-अच्छा, चलो!” कहकर पम्मी जाकर ड्राइंग रूम में बैठ गयी।
“मिस्टर कपूर रहते कहाँ हैं?” पम्मी ने बैठने से पहले पूछा।
“रहते तो वे चौक में हैं, लेकिन आजकल तो वे भी पापा के साथ बाहर गये हैं। वे तो आपकी एक दिन बहुत तारीफ कर रहे थे, बहुत तारीफ। इतनी तारीफ किसी लड़की की करते तो हमने सुना नहीं।”
“सचमुच!” पम्मी का चेहरा लाल हो गया। “वह बहुत अच्छे हैं, बहुत अच्छे हैं!”
थोड़ी देर पम्मी चुप रही, फिर बोली-”क्या बताया था उन्होंने हमारे बारे में?”
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