ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
सुधा चुप। बिसरिया कभी यह पुस्तक उलटता, कभी वह। थोड़ी देर बाद वह बोला-”आपके क्या विषय हैं?”
“जी!” बड़ी कोशिश से बोलते हुए सुधा ने कहा-”हिन्दी, इकनॉमिक्स और गृह-विज्ञान।” और उसके माथे पर पसीना झलक आया।
“आपको हिन्दी कौन पढ़ाता है?” बिसरिया ने किताब में ही निगाह गड़ाये हुए कहा।
सुधा ने चन्दर की ओर देखा और मुस्कराकर फिर मुँह झुका लिया।
“बोलो न तुम खुद, ये राजा गर्ल्स कॉलेज में हैं। शायद मिस पवार हिन्दी पढ़ाती हैं।” चन्दर ने कहा-”अच्छा, अब आप पढ़ाइए, मैं अपना काम करूँ।” चन्दर उठकर चल दिया। स्टडी रूम में मुश्किल से चन्दर दरवाजे तक पहुँचा होगा कि सुधा ने बिसरिया से कहा-
“जी, मैं पेन ले आऊँ!” और लपकती हुई चन्दर के पास पहुँची।
“ए सुनो, चन्दर!” चन्दर रुक गया और उसका कुरता पकडक़र छोटे बच्चों की तरह मचलते हुए सुधा बोली-”तुम चलकर बैठो तो हम पढ़ेंगे। ऐसे शरम लगती है।”
“जाओ, चलो! हर वक्त वही बचपना!” चन्दर ने डाँटकर कहा-”चलो, पढ़ो सीधे से। इतनी बड़ी हो गयी, अभी तक वही आदतें!”
सुधा चुपचाप मुँह लटकाकर खड़ी हो गयी और फिर धीरे-धीरे पढ़ने लग गयी। चन्दर स्डटी रूम में जाकर चार्ट बनाने लगा। डॉक्टर साहब अभी तक सो रहे थे। एक मक्खी उडक़र उनके गले पर बैठ गयी और उन्होंने बायें हाथ से मक्खी मारते हुए नींद में कहा-”मैं इस मामले में सरकार की नीति का विरोध करता हूँ।”
चन्दर ने चौंककर पीछे देखा। डॉक्टर साहब जग गये थे और जमुहाई ले रहे थे।
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