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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


सुधा कुछ देर तक सोचती रही, फिर बोली, “तो चन्दर, तुम शादी कर क्यों नहीं लेते?”

“नहीं सुधा, शादी नहीं करनी है मुझे। मैंने देखा कि जिसकी शादी हुई, कोई भी सुखी नहीं हुआ। सभी का भविष्य बिगड़ गया। और क्यों एक तवालत पाली जाए? जाने कैसी लड़की हो, क्या हो?”

“तो उसमें क्या? पापा से कहो उस लड़की को जाकर देख लें। हम भी पापा के साथ चले जाएँगे। अच्छी हो तो कर लो न, चन्दर। फिर यहीं रहना। हमें अकेला भी नहीं लगेगा। क्यों?”

“नहीं जी, तुम तो समझती नहीं हो। जिंदगी निभानी है कि कोई गाय-भैंस खरीदना है!” चन्दर ने हँसकर कहा, “आदमी एक-दूसरे को समझे, बूझे, प्यार करे, तब ब्याह के भी कोई माने हैं।”

“तो उसी से कर लो जिससे प्यार करते हो!”

चन्दर ने कुछ जवाब नहीं दिया।

“बोलो! चुप क्यों हो गये! अच्छा, तुमने किसी को प्यार किया, चन्दर!”

“क्यों?”

“बताओ न!”

“शायद नहीं!”

“बिल्कुल ठीक, हम भी यही सोच रहे थे अभी।” सुधा बोली।

“क्यों, ये क्यों सोच रही थी?”

“इसलिए कि तुमने किया होता तो तुम हमसे थोड़े ही छिपाते, हमें जरूर बताते, और नहीं बताया तो हम समझ गये कि अभी तुमने किसी से प्यार नहीं किया।”

“लेकिन तुमने यह पूछा क्यों, सुधा! यह बात तुम्हारे मन में उठी कैसे?”

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