ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“हाँ तुम! और कौन...मेरे तो दूसरा न कोई!” सुधा बोली और ढेर-के-ढेर फूल चन्दर के चरणों पर चढ़ाकर, झुककर चन्दर के चरणों को प्रणाम कर लिया। चन्दर ने घबराकर पाँव खींच लिए, “मैं इस योग्य नहीं हूँ, सुधा! क्यों लज्जित कर रही हो?”
सुधा कुछ नहीं बोली...अपने आँचल से एक छलकता हुआ आँसू पोंछकर नाश्ता लाने चली गयी।
जब वह यूनिवर्सिटी से लौटा तो देखा, सुधा मशीन रखे कुछ सिल रही है। चन्दर ने कपड़े बदलकर पूछा, “कहो, क्या सिल रही हो?”
“रूमाल और बनियाइन! कैसे काम चलता था तुम्हारा? न सन्दूक में एक भी रूमाल है, न एक भी बनियाइन। लापरवाही की भी हद है। तभी कहती हूँ ब्याह कर लो!”
“हाँ, किसी दर्जी की लड़की से ब्याह करवा दो!” चन्दर खाट पर बैठ गया और सुधा मशीन पर बैठी-बैठी सिलती रही। थोड़ी देर बाद सहसा उसने मशीन रोक दी और एकदम से घबरा कर उठी।
“क्या हुआ, सुधा...”
“बहुत दर्द हो रहा है....” वह उठी और खाट पर बेहोश-सी पड़ रही। चन्दर दौडक़र पंखा उठा लाया। और झलने लगा। “डॉक्टर बुला लाऊँ?”
“नहीं, अभी ठीक हो जाऊँगी। उबकाई आ रही है!” सुधा उठी।
“जाओ मत, मैं पीकदान उठा लाता हूँ।” चन्दर ने पीकदान उठाकर रख दिया और सुधा की पीठ सहलाने लगा। फिर सुधा हाँफती-सी लेट गयी। चन्दर दौड़कर इलायची और पानी ले आया। सुधा ने इलायची खायी और फिर पड़ रही। उसके माथे पर पसीना झलक आया।
“अब कैसी तबीयत है, सुधा?”
“बहुत दर्द है अंग-अंग में...मशीन चलाना नुकसान कर गया।” सुधा ने बहुत क्षीण स्वरों में कहा।
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