ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
सहसा गेसू ने एकदम बीच से पूछा, “गुरुजी, गाँधी जी आलू खाते हैं या नहीं?” सभी हँस पड़े।
मिस उमालकर ने बहुत गुस्से से गेसू की ओर देखा और डाँटकर कहा, “व्हाइ टॉक ऑव गाँधी? आई वाण्ट नो पोलिटिकल डिस्क्शन इन क्लास। (गाँधी से क्या मतलब? मैं दर्जे में राजनीतिक बहस नहीं चाहती।)” इस पर तो सभी लड़कियों की दबी हुई हँसी फूट पड़ी। मिस उमालकर झल्ला गयीं और मेज पर किताब पटकते हुए बोलीं, “साइलेन्स (खामोश)!” सभी चुप हो गये। उन्होंने फिर पढ़ाना शुरू किया।
“जिगर के रोगियों के लिए हरी तरकारियाँ बहुत फायदेमन्द होती हैं। लौकी, पालक और हर किस्म के हरे साग तन्दुरुस्ती के लिए बहुत फायदेमन्द होते हैं।”
सहसा प्रभा ने कुहनी मारकर गेसू से कहा, “ले, फिर क्या है, निकाल चने का हरा साग, खा-खाकर मोटे हों मिस उमालकर के घंटे में!”
गेसू ने अपने कुरते की जेब से बहुत-सा साग निकालकर कामिनी और प्रभा को दिया।
मिस उमालकर अब शक्कर के हानि-लाभ बता रही थीं, “लम्बे रोग के बाद रोगी को शक्कर कम देनी चाहिए। दूध या साबूदाने में ताड़ की मिश्री मिला सकते हैं। दूध तो ग्लूकोज के साथ बहुत स्वादिष्ट लगता है।”
इतने में जब तक सुधा के पास साग पहुँचा कि फौरन मिस उमालकर ने देख लिया। वह समझ गयीं, यह शरारत गेसू की होगी, “मिस गेसू, बीमारी की हालत में दूध काहे के साथ स्वादिष्ट लगता है?”
इतने में सुधा के मुँह से निकला, “साग काहे के साथ खाएँ?” और गेसू ने कहा, “नमक के साथ!”
“हूँ? नमक के साथ?” मिस उमालकर ने कहा, “बीमारी में दूध नमक के साथ अच्छा लगता है। खड़ी हो! कहाँ था ध्यान तुम्हारा?”
गेसू सन्न।
मिस उमालकर का चेहरा मारे गुस्से के लाल हो रहा था।
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