ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“हटाओ इन सब बातों को, चन्दर! तुमने व्यर्थ यह बात उठायी। मैं अब बात करना भूलती जा रही हूँ। मैं तो आयी थी तुम्हें देखकर कुछ मन का ताप मिटाने। उठो, खाना खाएँ!” सुधा बोली।
“नहीं, मैं चाहता हूँ, बातें सुलझ जाएँ, सुधा!” चन्दर ने सुधा के हाथ पर अपना सिर रखकर कहा, “मेरी तकलीफ अब बेहद बढ़ती जा रही है। मैं पागल न हो जाऊँ!”
“छिः, ऐसी बात नहीं सोचते। उठो!” चन्दर को उठाकर सुधा बोली। दोनों ने खाना खाया। महराजिन बड़े दुलार से परसती रहीं और सुधा से बातें करती रहीं। खाना खाकर चन्दर लेट गया और सोचने लगा, अब क्या सचमुच उसके और सुधा के बीच में कोई इतना भयंकर अन्तर आ गया है कि दोनों पहले जैसे नहीं हो सकते?
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