लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

305 पाठक हैं

संवेदनशील प्रेमकथा।


“तुम्हें क्या हो गया है, सुधा?”

“मुझे सुख-रोग हो गया है!” सुधा बहुत क्षीण हँसी हँसकर बोली, “बहुत सुख में रहने से ऐसा ही हो जाता है।”

चन्दर चुप हो गया। कैलाश ने बिस्तर कुली को देते हुए कहा, “इन्होंने तो बीमारी के मारे हम लोगों को परेशान कर रखा है। जाने बीमारियों को क्या मुहब्बत है इनसे! चलो उठो।” सुधा उठी।

कार पर सुधा के साथ पीछे सामान रख दिया गया और आगे कैलाश और चन्दर बैठे। कैलाश बोला, “चन्दर, तुम बहुत धीमे ड्राइव करना वरना इन्हें चक्कर आने लगेगा...” कार चल दी। चन्दर कैलाश की विदेश-यात्रा और कैलाश चन्दर के कॉलेज के बारे में बात करते रहे। मुश्किल से घर तक कार पहुँची होगी कि कैलाश बोला, “यार चन्दर, तुम्हें तकलीफ तो होगी लेकिन एक दिन के लिए कार तुम मुझे दे सकते हो?”

“क्यों?”

“मुझे जरा रीवाँ तक बहुत जरूरी काम से जाना है, वहाँ कुछ लोगों से मिलना है, कल दोपहर तक मैं चला आऊँगा।”

“इसके मतलब मेरे पास नहीं रहोगे एक दिन भी?”

“नहीं, इन्हें छोड़ जाऊँगा। लौटकर दिन-भर रहूँगा।”

“इन्हें छोड़ जाओगे? नहीं भाई, तुम जानते हो कि आजकल घर में कोई नहीं है।” चन्दर ने कुछ घबराकर कहा।

“तो क्या हुआ, तुम तो हो!” कैलाश बोला और चन्दर के चेहरे की घबराहट देखकर हँसकर बोला, “अरे यार, अब तुम पर इतना अविश्वास नहीं है। अविश्वास करना होता तो ब्याह के पहले ही कर लेते।”

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book