लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता

गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

305 पाठक हैं

संवेदनशील प्रेमकथा।


पम्मी चन्दर के हाथों को छूते ही जान गयी कि हाथ चाहे गरम हों, लेकिन स्पर्श बड़ा शीतल है, बड़ा नीरस। उसमें वह पिघली हुई आग की शराब नहीं है जो अभी तक चन्दर के होठों पर धधकती थी, चन्दर के स्पर्शों में बिखरती थी।

“कुछ तबीयत खराब है कपूर, बैठ जाओ!” पम्मी ने उठकर चन्दर को जबरदस्ती बिठाल दिया, “आजकल बहुत मेहनत पड़ती है, क्यों? चलो, तुम हमारे यहाँ रहो!”

पम्मी में केवल शरीर की प्यास थी, यह कहना पम्मी के प्रति अन्याय होगा। पम्मी में एक बहुत गहरी हमदर्दी थी चन्दर के लिए। चन्दर अगर शरीर की प्यास को जीत भी लेता तो उसकी हमदर्दी को वह नहीं ठुकरा पाता था। उस हमदर्दी का तिरस्कार होने से पम्मी दु:खी होती थी और उसे वह तभी स्वीकृत समझती थी जब चन्दर उसके रूप के आकर्षण में डूबा रहे। अगर पुरुषों के होठों में तीखी प्यास न हो, बाहुपाशों में जहर न हो तो वासना की इस शिथिलता से नारी फौरन समझ जाती है कि सम्बन्धों में दूरी आती जा रही है। सम्बन्धों की घनिष्ठता को नापने का नारी के पास एक ही मापदंड है, चुम्बन का तीखापन!

चन्दर के मन में ही नहीं वरन स्पर्शों में भी इतनी बिखरती हुई उदासी थी, इतनी उपेक्षा थी कि पम्मी मर्माहत हो गयी। उसके लिए यह पहली पराजय थी! आजकल पम्मी जान जाती थी कि चन्दर का रोम-रोम इस वक्त पम्मी की साँसों में डूबा हुआ है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book