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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


गेसू जाकर रिक्शा पर बैठ गयी और परदा तन गया। रिक्शा चल दिया। चन्दर एक अजीब-सी निगाह से देखता रहा जैसे अपने अतीत की कोई खोयी हुई चीज ढूँढ़ रहा हो, फिर धीरे-धीरे लौट आया। सूरज डूब गया था। वह गुसलखाना बन्द कर नहाने बैठ गया। जाने कहाँ-कहाँ मन भटक रहा था उसका। चन्दर मन का अस्थिर था, मन का बुरा नहीं था। गेसू ने आज उसके सामने अचानक वह तस्वीर रख दी थी जिसमें वह स्वर्ग की ऊँचाइयों पर मँडराया करता था। और जाने कैसा दर्द-सा उसके मन में उठ गया था, गेसू ने अपने अजाने में ही चन्दर के अविश्वास, चन्दर की प्रतिहिंसा को बहुत बड़ी हार दी थी। उसने सिर पर पानी डाला तो उसे लगा यह पानी नहीं है जिंदगी की धारा है, पिघले हुए अंगारों की धारा जिसमें पडक़र केवल वही जिन्दा बच पाया है, जिसके अंगों में प्यार का अमृत है। और चन्दर के मन में क्या है? महज वासना का विष...वह सड़ा हुआ, गला हुआ शरीर मात्र जो केवल सन्निपात के जोर से चल रहा है। उसने अपने मन के अमृत को गली में फेंक दिया है...उसने क्या किया है?

वह नहाकर आया और शीशे के सामने खड़ा होकर बाल काढऩे लगा-फिर शीशे की ओर एकटक देखकर बोला, “मुझे क्या देख रहे हो, चन्दर बाबू! मुझे तो तुमने बर्बाद कर डाला। आज कई महीने हो गये और तुमने एक चिट्ठी तक नहीं लिखी, छिः!” और उसने शीशा उलटकर रख दिया।

महराजिन खाना ले आयी। उसने खाना खाया और सुस्त-सा पड़ रहा। “भइया, आज घूमै न जाबो?”

“नहीं!” चन्दर ने कहा और पड़ा-पड़ा सोचने लगा। पम्मी के यहाँ नहीं गया।

यह गेसू दूसरे कमरे में बैठी थी। इस कमरे में बिनती उसे कैलाश का चित्र दिखा रही थी।...चित्र उसके मन में घूमने लगे...चन्दर, क्या इस दुनिया में तुम्हीं रह गये थे फोटो दिखाकर पसन्द कराने के लिए...चन्दर का हाथ उठा। तड़ से एक तमाचा...चन्दर, चोट तो नहीं आयी...मान लिया कि मेरे मन ने मुझसे न कहा हो, तुमसे तो मेरा मन कोई बात नहीं छिपाता...तो चन्दर, तुम शादी कर क्यों नहीं लेते? पापा लड़की देख आएँगे...हम भी देख लेंगे...तो फिर तुम बैठो तो हम पढ़ेंगे, वरना हमें शरम लगती है...चन्दर, तुम शादी मत करना, तुम इस सबके लिए नहीं बने हो...नहीं सुधा, तुम्हारे वक्ष पर सिर रखकर कितना सन्तोष मिलता है...

आसमान में एक-एक करके तारे टूटते जा रहे थे।

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