ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“क्यों, वहाँ तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं?” चन्दर ने पूछा।
“हाँ, समझते तो सब यही हैं, लेकिन जो तकलीफ है वह मैं जानती हूँ या बिनती जानती है।” सुधा ने गहरी साँस लेकर कहा, “वहाँ आदमी भी बने रहने का अधिकार नहीं।”
“क्यों?” चन्दर ने पूछा।
“क्या बताएँ तुम्हें चन्दर! कभी-कभी मन में आता है कि डूब मरूँ। ऐसा भी जीवन होगा मेरा, यह कभी मैं नहीं सोचती थी।” सुधा ने कहा।
“क्या बात है? बताओ न!” चन्दर ने पूछा।
“बता दूँगी, देवता! तुमसे भला क्या छिपाऊँगी लेकिन आज नहीं, फिर कभी!”
सुधा ने कहा, “तुम परेशान मत हो। कहाँ तुम, कहाँ दुनिया! काश कि कभी तुम्हारी गोद से अलग न होती मैं!” और सुधा ने अपना मुँह चन्दर की गोद में छिपा लिया। चाँदनी की पंखरियाँ बरस पड़ीं।
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