ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
पम्मी के होठों पर एक हल्की-सी मुस्कराहट, आँखों में हल्की-सी लाज और वक्ष में एक हल्का-सा कम्पन दौड़ गया। यह वाक्य कपूर ने चाहे शरारत में ही कहा हो, लेकिन कहा इतने शान्त और संयत स्वरों में कि पम्मी कुछ प्रतिवाद भी न कर सकी और फिर छह बरस से साठ बरस तक की कौन ऐसी स्त्री है जो अपने रूप की प्रशंसा पर बेहोश न हो जाए।
“अच्छा लाइए, वह स्पीच कहाँ है जो मुझे टाइप करनी है।” उसने विषय बदलते हुए कहा।
“यह लीजिए।” कपूर ने दे दी।
“यह तो मुश्किल से तीन-चार घण्टे का काम है?” और पम्मी स्पीच को उलट-पुलटकर देखने लगी।
“माफ कीजिएगा, अगर मैं कुछ व्यक्तिगत सवाल पूछूँ; क्या आप टाइपिस्ट हैं?” कपूर ने बहुत शिष्टता से पूछा।
“जी नहीं!” पम्मी ने उन्हीं कागजों पर नजर गड़ाते हुए कहा, “मैंने कभी टाइपिंग और शार्टहैंड सीखी थी, और तब मैं सीनियर केम्ब्रिज पास करके यूनिवर्सिटी गयी थी। यूनिवर्सिटी मुझे छोडऩी पड़ी क्योंकि मैंने अपनी शादी कर ली।”
“अच्छा, आपके पति कहाँ हैं?”
“रावलपिंडी में, आर्मी में।”
“लेकिन फिर आप डिक्रूज क्यों लिखती हैं, और फिर मिस?”
“क्योंकि हमलोग अलग हो गये हैं।” और स्पीच के कागज को फिर तह करती हुई बोली-
“मिस्टर कपूर, आप अविवाहित हैं?”
“जी हाँ?”
“और विवाह करने का इरादा तो नहीं रखते?”
“नहीं।”
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