ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
बर्टी ने सिर हिलाया, “हाँ, समझ गये!” जेनी अन्दर चल दी, फिर सहसा बाहर आयी और बर्टी को पकडक़र घसीटती हुई बोली, “पानी बरस रहा है, इतनी सर्दी बढ़ रही है और तुमने स्वेटर नहीं पहना, चलो पहनो, मरने की ठानी है। मैं साफ बताये देती हूँ चाहे दुनिया इधर की उधर हो जाये, मैं बिना शादी किये मरने नहीं दूँगी तुम्हें।” और वह बकरे की तरह बर्टी का कान पकडक़र अन्दर घसीट ले गयी।
चन्दर ने मन में कहा, यह कुछ इस रहस्यमय बँगले का असर है कि हरेक का दिमाग खराब ही मालूम देता है। दो मिनट बाद जब बर्टी लौटा तो उसके गले में गुलबन्द, ऊनी स्वेटर, ऊनी मोजे थे। वह हाँफता हुआ आकर बैठ गया।
“मिस्टर कपूर! तुम्हें मानना होगा कि यह लड़की, यह डाइन जेनी बहुत क्रूर है।”
“मानता हूँ, बर्टी! सोलहों आने मानता हूँ।” चन्दर ने मुसकराहट रोककर कहा, “लेकिन यह झगड़ा क्या है?”
“झगड़ा क्या होता है? औरतों को समझना बहुत मुश्किल है।”
“इस औरत के फन्दे में फँसे कैसे तुम?” चन्दर ने पूछा।
“शी! शी!” होठ पर हाथ रखकर धीरे बोलने का इशारा करते हुए बर्टी ने कहा, “धीरे बोलो। बात ऐसी हुई कि जब मैं तराई में शिकार खेल रहा था तो एक बार अकेले छूट गया! यह एक पेंशनर फॉरेस्ट गार्ड की अनब्याही लड़की थी। शिकार में बहुत होशियार। मैं भटकते हुए पहुँचा तो इसका बाप बीमार था। मैं रुक गया। तीसरे दिन वह मर गया। उसे जाने कौन-सा रोग था कि उसका चेहरा बहुत डरावना हो गया था और पेट फूल गया था। रात को इसे बहुत डर लगा तो यह मेरे पास आकर लेट गयी। बीच में बन्दूक रखकर हम लोग सो गये। रात को इसने बीच से बन्दूक हटा दी और अब वह कहती है कि मुझसे ब्याह करेगी और नहीं करूँगा तो मार डालेगी। पम्मी भी मुझसे बोली-तुम्हें अब ब्याह करना ही होगा। अब मजबूरी है, मिस्टर कपूर!”
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