ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“हाँ-हाँ गड़ेरियाँ, मेरा मतलब है गन्ने की गड़ेरियाँ!” दरवाजे के पीछे बिनती से न रहा गया और खिलखिलाकर हँस पड़ी और सामने आ गयी। चन्दर भी अट्टïहास कर पड़ा।
बिसरिया क्षण-भर आँख फाड़े दोनों की ओर देखता रहा। उसके बाद वह ज्यों ही मजाक समझा, उसका चेहरा लाल हो गया। हैट उठाकर बोला, “अच्छा, आप लोग मजाक बना रहे थे मेरा। कोई बात नहीं, मैं देखूँगा। मिस्टर कपूर, आप अपने को क्या समझते हैं?” वह चल दिया।
“अरे, सुनो बिसरिया!” चन्दर ने पुकारा, वह हँसी नहीं रोक पा रहा था। बिसरिया मुड़ा। मुड़कर बोला, “कल से मैं पढ़ाने नहीं आ सकता। मैं आपकी शकल भी नहीं देखना चाहता।” उसने बिनती से कहा।
“तो मुँह फेरकर पढ़ा दीजिएगा।” चन्दर बोला। बिनती फिर हँस पड़ी। बिसरिया ने मुडक़र बड़े गुस्से से देखा और पैर पटकते हुए चला गया।
“बेचारे कवि, कलाकार आज की दुनिया में प्यार भी नहीं कर पाते।” चन्दर ने कहा और दोनों की हँसी बहुत देर तक गूँजती रही।
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