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गुनाहों का देवता

धर्मवीर भारती

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :614
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9577
आईएसबीएन :9781613012482

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संवेदनशील प्रेमकथा।


चन्दर चुप रहा। लेकिन सुधा के आँसू जैसे नसों के सहारे उसके हृदय में उतर गये और जब हृदय डूबने लगा तो उसकी पलकों पर उतर आये। सुधा ने देखा लेकिन कुछ भी नहीं बोली। घंटा-भर बहुत गहरी साँस ली; बेहद उदासी से मुसकराकर कहा, “हम दोनों पागल हो गये हैं, क्यों चन्दर? अच्छा, अब शाम हो गयी। जरा लॉन पर चलें।”

सुधा चन्दर के कन्धे पर हाथ रखकर खड़ी हो गयी। बिनती ने दवा दी, थर्मामीटर से बुखार देखा। बुखार नहीं था। चन्दर ने सुधा के लिए कुरसी उठायी। सुधा ने हँसकर कहा, “चन्दर, आज बीमार हूँ तो कुरसी उठा रहे हो, मर जाऊँगी तो अरथी उठाने भी आना, वरना नरक मिलेगा! समझे न!”

“छिः, ऐसा कुबोल न बोला करो, दीदी?”

सुधा लॉन में कुरसी पर बैठ गयी। बगल में नीचे चन्दर बैठ गया। सुधा ने चन्दर का सिर अपनी कुरसी में टिका लिया और अपनी उँगलियों से चन्दर के सूखे होठों को छूते हुए कहा, “चन्दर, आज मैंने तुम्हें बहुत दु:खी किया, क्यों? लेकिन जाने क्यों, दु:खी न करती तो आज मुझे वह ताकत न मिलती जो मिल गयी।” और सहसा चन्दर के सिर को अपनी गोद में खींचती हुई-सी सुधा ने कहा, “आराध्य मेरे! आज तुम्हें बहुत-सी बातें बताऊँगी। बहुत-सी।”

बिनती उठकर जाने लगी तो सुधा ने कहा, “कहाँ चली? बैठ तू यहाँ। तू गवाह रहेगी ताकि बाद में चन्दर यह न कहे कि सुधा कमजोर निकल गयी।” बिनती बैठ गयी। सुधा ने क्षण-भर आँखें बन्द कर लीं और अपनी वेणी पीठ पर से खींचकर गोद में ढाल ली और बोली, “चन्दर, आज कितने ही साल हुए, जबसे मैंने तुम्हें जाना है, तब से अच्छे-बुरे सभी कामों का फैसला तुम्ही करते रहे हो। आज भी तुम्हीं बताओ चन्दर कि अगर मैं अपने को बहुत सँभालने की कोशिश करती हूँ और नहीं सँभाल पाती हूँ, तो यह कोई पाप तो नहीं? तुम जानते हो चन्दर, तुम जितने मजबूत हो उस पर मुझे घमंड है कि तुम कितनी ऊँचाई पर हो, मैं भी उतना ही मजबूत बनने की कोशिश करती हूँ, उतने ही ऊँचे उठने की कोशिश करती हूँ, अगर कभी-कभी फिसल जाती हूँ तो यह अपराध तो नहीं?”

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