ई-पुस्तकें >> गुनाहों का देवता गुनाहों का देवताधर्मवीर भारती
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संवेदनशील प्रेमकथा।
“सुधा, मैं जानता हूँ मैं तुम पर शायद बहुत सख्ती कर रहा हूँ, लेकिन तुम्हारे सिवा और कौन है मेरा? बताओ। तुम्हीं पर अपना अधिकार भी आजमा सकता हूँ। विश्वास करो मुझ पर सुधा, जीवन में अलगाव, दूरी, दुख और पीड़ा आदमी को महान बना सकती है। भावुकता और सुख हमें ऊँचे नहीं उठाते। बताओ सुधा, तुम्हें क्या पसन्द है? मैं ऊँचा उठूँ तुम्हारे विश्वास के सहारे, तुम ऊँची उठो मेरे विश्वास के सहारे, इससे अच्छा और क्या है सुधा! चाहो तो मेरे जीवन को एक पवित्र साधन बना दो, चाहो तो एक छिछली अनुभूति।”
सुधा ने एक गहरी साँस ली, क्षण-भर घड़ी की ओर देखा और बोली, “इतनी जल्दी क्या है अभी, चन्दर? तुम जो कहोगे मैं कर लूँगी!” और फिर वह सिसकने लगी-”लेकिन इतनी जल्दी क्या हैï? अभी मुझे पढ़ लेने दो!”
“नहीं, इतना अच्छा लड़का फिर मिलेगा नहीं। और इस लड़के के साथ तुम वहाँ पढ़ भी सकती हो। मैं जानता हूँ उसे। वह देवताओं-सा निश्छल है। बोलो, मैं पापा से कह दूँ कि तुम्हें पसन्द है?”
सुधा कुछ नहीं बोली।
“मौन का मतलब हाँ है न?” चन्दर ने पूछा।
सुधा ने कुछ नहीं कहा। झुककर चन्दर के पैरों को अपने होठों से छू लिया और पलकों से दो आँसू चू पड़े। चन्दर ने सुधा को उठा लिया और उसके माथे पर हाथ रखकर कहा, “ईश्वर तुम्हारी आत्मा को सदा ऊँचा बनाएगा, सुधा!” उसने एक गहरी साँस लेकर कहा, “मुझे तुम पर गर्व है,” और फोटो उठाकर बाहर चलने लगा।
“कहाँ जा रहे हो! जाओ मत!” सुधा ने उसका कुरता पकडक़र बड़ी आजिजी से कहा, “मेरे पास रहो, तबीयत घबराती है?”
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