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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

भारतीय स्त्रियाँ अपना रास्ता निकाल रही हैं। आज वह सैकड़ों की संख्या में इंग्लैंड, अमेरिका तथा दूसरे देशों में पढ़ने के लिए गई हुई हैं, और वह इस झूठे श्लोक को नहीं मानतीं -

पिता  रक्षति  कौमारे  भर्त्ता  रक्षति  यौवने।
पुत्रस्तु स्थाविरे भावे न स्त्री स्वातंत्र्यमर्हति।।

आज इंग्लैंड, अमेरिका में पढ़ने गयीं कुमारियों की रक्षा करने के लिए कौन संरक्षक भेजे गये हैं? आज स्त्री भी अपने आप अपनी रक्षा कर रही है, जैसे पुरुष अपने आप अपनी रक्षा करता चला आया है। दूसरे देशों में स्त्री के रास्ते की सारी रुकावटें धीरे-धीरे दूर होती गई हैं। उन देशों ने बहुत पहले काम शुरू किया, हमने बहुत पीछे शुरू किया है, लेकिन संसार का प्रवाह हमारे साथ है। पूछा जा सकता है, इतिहास में तो कहीं स्त्री की साहस-यात्राओं का पता नहीं मिलता। यह अच्छा तर्क है, स्त्री को पहले हाथ-पैर बाँधकर पटक दो और फिर उसके बाद कहो कि इतिहास में तो साहसी यात्रिणियों का कहीं नाम नहीं आता। यदि इतिहास में अभी तक साहसी यात्रिणियों का उल्लेख नहीं आता, यदि पिछला इतिहास उनके पक्ष में नहीं है, तो आज की तरुणी अपना नया इतिहास बनायगी, अपने लिए नया रास्ता निकालेगी।

तरुणियों को अपना मार्ग मुक्त करने में सफल होने के संबंध में अपनी शुभ कामना प्रकट करते हुए मैं पुरुषों से कहूँगा - तुम टिटहरी की तरह पैर खड़ाकर आसमान को रोकने की कोशिश न करो। तुम्हारे सामने पिछले पच्चीस सालों में जो महान परिवर्तन स्त्री-समाज में हुए हैं, वह पिछली शताब्दी के अंत के वर्षों में वाणी पर भी लाने लायक नहीं थे। नारी की तीन पीढ़ियाँ क्रमश: बढ़ते-बढ़ते आधुनिक वातावरण में पहुँची हैं। यहाँ उसका क्रम-विकास कैसा देखने में आता है? पहली पीढ़ी ने परदा हटाया और पूजा-पाठ की पोथियों तक पहुँचने का साहस किया, दूसरी पीढ़ी ने थोड़ी-थोड़ी आधुनिक शिक्षा दीक्षा आरंभ की, किंतु अभी उसे कालेज में पढ़ते हुए भी अपने सहपाठी पुरुष से समकक्षता करने का साहस नहीं हुआ था। आज तरुणियों की तीसरी पीढ़ी बिलकुल तरुणों के समकक्ष बनने को तैयार है - साधारण काम नहीं शासन-प्रबंध की बड़ी-बड़ी नौकरियों में भी अब वह जाने के लिए तैयार है। तुम इस प्रवाह को रोक नहीं सकते। अधिक-से-अधिक अपनी पुत्रियों को आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से वंचित रख सकते हो, लेकिन पौत्री को कैसे रोकोगे, जो कि तुम्हारे संसार से कूच करने के बाद आने वाली है। हरेक आदमी पुत्र और पुत्री को ही कुछ वर्षों तक नियंत्रण में रख सकता है, तीसरी पीढ़ी पर नियंत्रण करने वाला व्यक्ति अभी तक तो कहीं दिखायी नहीं पड़ा। और चौथी पीढ़ी की बात ही क्या करनी, जब कि लोग परदादा का नाम भी नहीं जानते, फिर उनके बनाए विधान कहाँ तक नियंत्रण रख सकेंगे? दुनिया बदलती आई है, बदल रही है और हमारी आँखों के सामने भीषण परिवर्तन दिन-पर-दिन हो रहे हैं। चट्टान से सिर टकराना बुद्धिमान का काम नहीं है। लड़कों के घुमक्कड़ बनने में तुम बाधक होते रहे, लेकिन अब लड़के तुम्हारे हाथ में नहीं रहे। लड़कियाँ भी वैसा ही करने जा रही हैं। उन्हें घुमक्कड़ बनने दो, उन्हें दुर्गम और बीहड़ रास्तों से भिन्ने-भिन्न देशों में जाने दो। लाठी लेकर रक्षा करने और पहरा देने से उनकी रक्षा नहीं हो सकती। वह तभी रक्षित होंगी जब वह खुद अपनी रक्षा कर सकेगीं। तुम्हारी नीति और आचार-नियम सभी दोहरे रहे हैं - हाथी के दाँत खाने के और और दिखाने के और। अब समझदार मानव इस तरह के डबल आचार-विचार का पालन नहीं कर सकता, यह तुम आँखों के सामने देख रहे हो।

 

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