ई-पुस्तकें >> घुमक्कड़ शास्त्र घुमक्कड़ शास्त्रराहुल सांकृत्यायन
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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण
6. बंबई-मद्रास की पिछड़ी जातियों में घुमक्कड़ के लिए हिंदी उतनी सहायक नहीं होगी, किंतु बंबई में उससे काम चल जायगा। बंबई की पिछड़ी जातियाँ हैं-
(1) बर्दा (2) मवची (3) बवचा (4) नायक (5) भील (6) परधी (7) चोधरा (8) पटेलिया (9) ढ़ंका (10) पोमला (11) धोदिया (12) पोवारा (13) दुबला (14) रथवा (15) गमटा (16) तदवी भील (17) गोंड (18) ठाकुर (19) कठोदी (कटकरी) (20) बलवाई (21) कोंकना (22) वर्ली (23) कोली महादेव (24) वसवा
7. ओडीसा में-
(1) बगता (2) सौरा (सबार) (3) बनजारी (4) उढ़ांव (5) चेंपू (6) संथाल (7) गड़बो (8) खड़िया (9) गोंड (10) मुंडा (11) जटपू (12) बनजारा (13) खोंड (14) बिंझिया (15) कोंडाडोरा (16) किसान (17) कोया (18) कोली (19) परोजा (20) कोरा
8. पश्चिमी बंगाल में -
(1) बोटिया (2) माघ (3) चकमा (4) स्रो (5) कूकी (6) उडांव (7) लेपचा (8) संथाल (9) मुंडा (10) टिपरा
9. आसाम में निम्न जातियाँ हैं -
(1) कछारी (2) देवरी (3) बोरो-कछारी (4) अबोर (5) राभा (6) मिस्मीव (7) मिरी (8) डफला (9) लालुड (10) सिडफो (11) मिकिर (12) खम्ती) (13) गारो (14) नागा (15) हजोनफी (16) कूकी
यह पिछड़ी जातियाँ दूर के घने जंगलों और जंगल से ढँके दुर्गम पहाड़ों में रहती हैं, जहाँ अब भी बाघ, हाथी और दूसरे श्वादपद निर्द्वंद्व विचरते हैं। जो पिछड़ी जातियाँ अपने प्रांत में रहती हैं, शायद उनकी ओर घुमक्कड़ का ध्यान नहीं आकृष्ट हो, क्योंकि यात्रा चार-छ सौ मील की भी न हो तो मजा क्या? 100-500 मील पर रहने वाले तो घर की मुर्गी साग बराबर हैं। लेकिन आसाम की पिछड़ी जातियों का आकर्षण भी कम नहीं होगा। आसाम की एक ओर उत्तरी बर्मा की दुर्गम पहाड़ी भूमि तथा पिछड़ी जातियाँ हैं, और दूसरी तरफ रहस्यमय तिब्ब़त है। स्वयं यहाँ की पिछड़ी जातियाँ एक रहस्य हैं। यहाँ नाना मानव वंशों का समागम है। इनमें कुछ उन जातियों से संबंध रखती हैं जो स्याम (थाई) और कंबोज में बसती हैं, कुछ का संबंध तिब्बती जाति से हैं। जहाँ ब्रह्मपुत्र (लौहित्यक) तिब्बत के गगनचुंबी पर्वतों को तोड़कर पूरब से अपनी दिशा को एकदम दक्षिण की ओर मोड़ देती है, वहीं से यह जातियाँ आरंभ होती हैं। इनमें कितनी ही जगहें हैं, जहाँ घने जंगल हैं, वर्षा तथा गर्मी होती है, लेकिन कितनी ऐसी जगहें भी हैं, जहाँ जाड़ों में बर्फ पड़ा करती है। मिस्मी, मिकिर, नागा आदि जातियाँ तथा उनके पुराने सीधे-सादे रिवाज घुमक्कड़ का ध्यान आकृष्ट किए बिना नहीं रह सकते। हमारे देश से बाहर भी इस तरह की पिछड़ी जातियाँ बिखरी पड़ी हुई हैं। जहाँ शासन धनिक वर्ग के हाथ में है, वहाँ आशा नहीं की जा सकती कि इस शताब्दी के अंत तक भी ये जातियाँ अंधकार से आधुनिक प्रकाश में आ सकेंगी।
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