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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

पाठक कहेंगे, तब हमें रोकने की क्या आवश्यकता क्यों नहीं - “यदहरेव विरजेत तदहरेव प्रव्रजेत्” (जिस दिन ही मन उचटे, उसी दिन निकल पड़ना चाहिए)। इसके उत्तर में मैं कहूँगा - यदि आप तीसरी-चौथी-पाँचवी-छठीं श्रेणी के ही घुमक्कड़ बनना चा‍हते हैं, तो खुशी से ऐसा कर सकते हैं। लेकिन मैं चाहता हूँ कि आप प्रथम और द्वितीय श्रेणी के घुमक्कड़ बनें इसलिए मन को रँगकर निकलने से पहले थोड़ी तैयारी कर लें। घुमकक्ड़ी जीवन के लिए पहला कदम है, अपने भावी जीवन के संबंध में पक्का संकल्प कर डालना। इसको जितना ही जल्दी कर लें, उतना ही अच्छा। बारह से चौदह साल तक ही उम्र तक में ऐसा संकल्प अवश्य हो जाना चाहिए। बारह से पहले बहुत कम को अपेक्षित ज्ञान और अनुभव होता है, जिसके बल पर कि वह अपने प्रोग्राम को पक्का कर सकें। लेकिन बारह और चौदह का समय ऐसा है जिसमें बुद्धि रखनेवाले बालक एक निश्चय पर पहुँच सकते हैं। प्रथम श्रेणी के घुमक्कड़ के लिए मेधावी होना आवश्यक है। मैं चाहता हूँ, घुमक्कड़-पथ के अनुयायी प्रथम श्रेणी के मस्तिष्क वाले तरुण और तरुणियाँ बनें। वैसे अगली श्रेणियों के घुमक्कड़ों से भी समाज को फायदा है, यह मैं बतला चुका हूँ। 12-14 की आयु में मानसिक दीक्षा लेकर मामूली सैर-सपाटे के बहाने कुछ इधर-उधर छोटी-मोटी कुदान करते रहना चाहिए।

कौन समय है जबकि तरुण को महाभिनिष्क्रमण करना चाहिए? मैं समझता हूँ इसके लिए कम-से-कम आयु 16-18 की होनी चाहिए और कम-से-कम पढ़ने की योग्यता मैट्रिक या उसके आसपास वाली दूसरी तरह की पढ़ाई। मैट्रिक से मेरा मतलब खास परीक्षा से नहीं है, बल्कि उतना पढ़ने में जितना साधारण साहित्य, इतिहास, भूगोल गणित का ज्ञान होता है, घुमकक्ड़ी के लिए वह अल्पतम आवश्यक ज्ञान है। मैं चाहता हँ  कि एक बार चल देने पर फिर आदमी को बीच में मामूली ज्ञान के अर्जन की फिक्र में रुकना नहीं पड़े।

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