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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

घुमक्कड़ी के पथ पर पैर रखने वालों के सामने का जंजाल इतने तक ही सीमित नहीं है। शारदा-कानून के बनने पर भी उसे ताक पर रखकर लोगों ने अपने-बच्चों का ब्याह किया है। कभी-कभी ऐसा भी देखने में आयगा, कि 15-16 वर्ष का घुमक्कड़ जब अपने पथ पर पैर रखना चाहता है, तो उसके पैरों में किसी लड़की की बेड़ी बाँध रखी गई होती है। ऐसी गैरकानूनी बेड़ी को तोड़ फेंकने का हरेक को अधिकार है। फिर लोगों का कहना बकवास है - “तुम्हारे चले जाने पर स्त्री क्या करेगी?” हमारे नए संविधान में 21 वर्ष के बाद आदमी को मत देने का अधिकार माना गया है, अर्थात् 21 वर्ष से पहले तक अपने-भले-बुरे की बात वह नहीं समझता, न अपनी जिम्मेवारी को ठीक से पहचान सकता है। जब यह बात है, तो 21 साल से पहले तरुण या तरुणी पर उसके ब्याह की जिम्मेपदारी नहीं होती। ऐसे ब्याह को न्यायय और बुद्धि गैरकानूनी मानती है। तरुण या तरुणी को ऐसे बंधन की जरा भी पर्वाह नहीं करनी चाहिए। यह कहने पर फिर कहा जायगा - “जिम्मेवारी न सही, लेकिन अब तो वह तुम्हारे साथ बँध गई है, तुम्हारे छोड़ने पर किस घाट लगेगी?” यह फंदा भारी है, यहाँ मस्तिष्क से नहीं दिल से अपील की जा रही है। दया दिखलाने के लिए मक्खी की तरह गुड़ पर बैठकर सदा के लिए पंखों को कटवा दो। दुनिया में दु:ख है, चिंताएँ हैं, उन्हें जड़ से न काट कर पत्तों में पानी डाल वृक्ष को हरा नहीं किया जा सकता। यदि सयानों ने जिम्मेवारी नहीं समझी और एक अबोध व्यक्ति को फंदे में फँसा दिया, तो यह आशा रखनी कहाँ तक उचित है, कि शिकार फंदे को उसी तरह पैर में डाले पड़ा रहेगा। घुमक्कड़ यदि ऐसी मिथ्या परिणीता को छोड़ता है, तो वह घर और संपत्ति को तो कंधे पर उठाये नहीं ले जाता। जिसने अपनी लड़की दी है, उसने पहले व्यक्ति का नहीं, घर का ख्याल करके ही ब्याह किया था। घर वहाँ मौजूद है, रहे वहाँ पर। यदि वह समझती है, कि उस पर अन्याय हुआ है, तो समाज से बदला ले, वह अपना रास्ता लेने के लिए स्वतंत्र है। ऐसे समय पुराने समय में विवाह-विच्छेद का नियम था, पति के गुम होने के तीन वर्ष बाद स्त्री फिर से विवाह कर सकती थी, आज भी सत्तर सैकड़ा हिंदू करते हैं। हिंदू-कोड-बिल में यह बात रखी गई है, जिस पर सारे पुरान-पंथी हाय-तोबा मचा रहे हैं। अच्छी बात है, विवाह-विच्छेद न माना जाय, घर में ही बैठा रखो। करोड़ों की संख्या में वयस्क विधवाएँ मौजूद ही हैं, यदि घुमक्कड़ के कारण कुछ हजार और बढ़ जाती हैं, तो कौन सा आसमान टूट जायगा? बल्कि उससे तो कहना होगा, कि विधवा के रूप में या परिव्रजित की स्त्री के रूप में जितनी ही अधिक स्त्रियाँ संतान-वृद्धि रोकें, उतना ही देश का कल्याण है। घुमक्कड़ होश या बेहोश किसी अवस्था में भी ब्याही पत्नी को छोड़ जाता है, तो उससे राष्ट्रीय दृष्टि से कोई हानि नहीं बल्कि लाभ है।

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