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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

घुमक्कड़-शास्त्र समाप्त हो रहा है। शास्त्र होने से यह नहीं समझना चाहिए कि यह पूर्ण है कोई भी शास्त्र पहले ही कर्ता के हाथों पूर्णता नहीं प्राप्त करता। जब उस शास्त्र पर वाद-विवाद, खंडन-मंडन होते हैं, तब शास्त्र में पूर्णता आने लगती है। घुमक्कड़-शास्त्र् से घुमक्कड़ी पंथ बहुत पुराना है। घुमक्कड़-चर्या मानव के आदिम काल से चली आई है, लेकिन यह शास्त्र जून 1949 से पहले नहीं लिखा जा सका। किसी ने इसके महत्व को नहीं समझा। वैसे धार्मिक घुमक्कड़ों के पथ-प्रदर्शन के लिए, कितनी ही बातें पहले भी लिखी गई थीं। सबसे प्राचीन संग्रह हमें बौद्धों के प्रातिमोक्ष-सूत्रों के रूप में मिलता है। उनका प्राचीन ऐतिहासिक महत्व बहुत है और हम कहेंगे कि हर एक घुमक्कड़ को एक उनका पारायण अवश्य करना चाहिए (इन सूत्रों का मैंने विनयपिटक ग्रंथ में अनुवाद कर दिया है)। उनके महत्व को मानते हुए भी मैं नम्रतापूर्वक कहूँगा, कि घुमक्कड़-शास्त्र लिखने का यह पहला उपक्रम है। यदि हमारे पाठक-पाठिकाएँ चाहते हैं कि इस शास्त्र की त्रुटियाँ दूर हो जायँ, तो वह अवश्य लेखक के पास अपने विचार लिख भेंजे। हो सकता है, इस शास्त्र को देखकर इससे भी अच्छा सांगोपांग ग्रंथ कोई घुमक्कड़ लिख डाले, उसे देखकर इन पंक्तियों के लेखक को बड़ी प्रसन्नगता होगी। इस प्रथम प्रयास का अभिप्राय ही यह है, कि अधिक अनुभव तथा क्षमतावाले विचारक इस विषय को उपेक्षित न करें, और अपनी समर्थ लेखनी को इस पर चलाएँ। आने वाली पीढ़ियों में अवश्य कितने ही पुरुष पैदा होंगे, जो अधिक निर्दोष ग्रंथ की रचना कर सकेंगे। उस वक्त लेखक जैसों को यह जान कर संतोष होगा, कि यह भार अधिक शक्तिशाली कंधों पर पड़ा।

“जयतु जयतु घुमक्कड़-पंथा।”

 

।। समाप्त ।।

 

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