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घुमक्कड़ शास्त्र

राहुल सांकृत्यायन

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9565
आईएसबीएन :9781613012758

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यात्रा संग्रहों के प्रणेता का यात्रा संस्मरण

घुमक्कड़ के हृदय में जीवन की स्मृ्तियाँ वैसे ही संचित होती रहती हैं, किंतु अच्छा है वह अपनी डायरी में इन स्मृतियों का उल्लेख करता जाय। कभी यात्रा लिखने की इच्छा होने पर यह स्मृति-संचिकाएँ बहुत काम आती हैं। अपने काम नहीं आयें, तो भी हो सकता है, दूसरे के काम आयें। डायरी घुमक्कड़ के लिए उपयोगी चीज है। यदि घुमक्कड़ ने जिस दिन से इस पथ पर पैर रखा, उसी दिन से वह डायरी लिखने लगे, तो बहुत अच्छा हो। ऐसा न करने वालों को पीछे पछतावा होता है। घुमक्कड़ का जब कोई घर-द्वार नहीं, तो वह साल-साल की डायरी कहाँ सुरक्षित रखेगा? यह कोई कठिन प्रश्न नहीं है। घुमक्कड़ अपनी यात्रा में ऐतिहासिक महत्व की पुस्तकें प्राप्त? कर सकता है, चित्रपट या मूर्तियाँ जमा कर सकता है। उसके पास इनके रखने की जगह नहीं, किंतु क्या ऐसा करने से वह बाज आ सकता है? वह उन्हें जमा करके उपयुक्त स्थान में भेज सकता है। यदि मैं यह समझता कि बे-घरबार का होने के कारण क्यों न किसी चीज को जमा करूँ तो मैं समझता हूँ पीछे मुझे इसका बराबर पछतावा रहता। मैंने तिब्बत में पुराने सुंदर-चित्र खरीदे, हस्तइलिखित पुस्तकें जमा कीं, और भी जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक महत्व की चींजे मिलीं, उन्हें जमा करते समय कभी नहीं, ख्याल किया कि बे-घर के आदमी को ऐसा करना ठीक नहीं। पहली यात्रा में बाईस खच्चर पुस्तकें और दूसरी चीजें मैं साथ लाया। मैं जानता था कि उनका महत्व है, और हमारे देश में सुरक्षित रखने का स्थान भी मिल जायगा। कुछ समय बाद वह चीजें पटना म्यू‍जियम को दे दी। अगली यात्राओं में भी जब-जब कोई महत्वपूर्ण चीज हाथ लगी, मैं लाता रहा। उनमें से कुछ पटना म्यूजियम को दीं, कुछ को काशी के कला-भवन में और कुछ चीजें प्रयाग म्यूनिसिपल म्यूजियम में भी। व्यक्तियों को ऐसी चीजें देना मुझे कभी पसंद नहीं रहा। बहुत आग्रह करने पर किन्हीं मित्रों को सिर्फ दो-एक ही ऐसी चीजें लाकर दीं। घुमक्कड़ अपनी यात्रा में कितनी ही दिलचस्प चीजें पा सकता है। यदि वह सुरक्षित जगह पर हैं तो कोई बात नहीं, यदि अरक्षित जगह पर हैं, तो उन्हें अवश्य सुरक्षित जगह पर पहुँचाना घुमक्कड़ का कर्तव्य है। हाँ, यह देखते हुए कि वैसा करने से घुमक्कड़-पंथ पर कोई लांछन न लगे।

घुमक्कड़ को इस बात भी ख्याल मन में लाना नहीं चाहिए, कि उसने चीजों को इतनी कठिनाई से संग्रह किया, लेकिन लोगों ने उस संग्रह से उसका नाम हटा दिया। एक बार ऐसा देखा गया : एक घुमक्कड़ ने बहुत-सी बहुमूल्य वस्तुएँ एक संस्था को दी थीं। संस्था के अधिकारियों ने पहले उन चीजों के साथ दायक का नाम लिखकर टाँग दिया था, फिर किसी समय नाम को हटा दिया। घुमक्कड़ के एक साथी को इसका बहुत क्षोभ हुआ। लेकिन घुमक्कड़ को इसका कोई ख्याल नहीं हुआ। उसने कहा : यदि यह चीजें इतनी नगण्य हैं, तो दायक का नाम रहने से ही क्या होता है? यदि वह बड़े महत्व की वस्तुएँ हैं, तो वर्तमान अधिकारियों का ऐसा करना केवल उपहासास्पद चेष्टा है, लेकिन वह महत्वपूर्ण वस्तु‍एँ कैसे यहाँ पहुँची, क्या इस बात को अगली पीढ़ियों से छिपाया जा सकता है?

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