ई-पुस्तकें >> घाट का पत्थर घाट का पत्थरगुलशन नन्दा
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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।
‘माला, मैं चलता हूं। बातों-बातों में इतनी दूर पहुंच गया।’
‘अच्छा फिर मिलेंगे, मैं तो फिर भी यही कहूंगी कि उसका ध्यान छोड़ दो। जिस राह जाना नहीं उसकी नाप-तोल करने से क्या लाभ?’
यह कहकर माला आगे चली गई और दीपक घर की ओर लौटा।
तो क्या वह उस मार्ग को छोड़ दे?
लिली से बात करते समय तो उसने निश्चय कर ही लिया था कि वह लिली और सागर के रास्ते में कभी नहीं आएगा परंतु माला की बातों ने उसे अपने निश्चय पर फिर से विचार करने को बाध्य कर दिया।
इन्हीं विचारों के संघर्ष में डूबा वह घर पहुंचा। लिली वापस आ चुकी थी। दीपक को देखते ही बोली, ‘कहां गए थे?’
‘जरा घूमने। माला आई थी।’
‘कब?’
‘तुम्हारे जाने के कुछ देर बाद ही।’
‘कुछ कहती थी?’
‘ऐसे ही मिलने आई थी।’ यह कहकर दीपक कमरे में चला गया।
दीपक ईर्ष्या की आग में जलने लगा। दिन पर दिन उसे लिली से खीझ होती जा रही थी। क्या वह उससे घृणा करने लगा था?
एक रविवार को जब वह बाहर से लौटकर आया तो सेठ साहब ड्राइंगरूम में बैठकर एक व्यक्ति से बात कर रहे थे। कोई नए महाशय थे। दीपक ने पहले कभी उन्हें देखा न था। जब वह अंदर आने लगा तो सेठ साहब ने आवाज दी और दीपक उनके पास जाकर बोला, ‘कहिए, क्या आज्ञा है?’
‘यह है वह होनहार जिनको मैंने अपना सारा कारोबार सौंप दिया है।’
‘तो यह है दीपक! बहुत प्रसन्नता हुई इनसे मिलकर। आओ बेटा, बैठो।’ वे बोले और दीपक पास ही सोफे पर बैठ गया।
‘और दीपक, यह हैं बैरिस्टर मधुसूदन, जो हमारे सामने वाली कोठी में रहते हैं। सागर को तो तुम जानते ही होगे, यह उसके पिता है।’
मानो दीपक को किसी ने डस लिया हो। वह सागर का नाम सुनते ही कांप गया। तो यह हैं उसके पिता। सामने रहते-रहते इतना समय बीत गया और अब मेल-जोल बढ़ाना शुरु किया?
‘अच्छा मैं चलता हूं। क्या आप खाना खा चुके?’ दीपक ने उठते हुए कहा।
‘मैं तो खा चुका हूं। लिली खा रही होगी। तुम भी खा लो।’
दीपक सीधा खाने के कमरे में पहुंचा। लिली खाना खा रही थी परंतु अकेली नहीं सागर भी साथ था। उसे देखते ही बोली, ‘आओ दीपक, बहुत देर तक प्रतीक्षा करने के बाद खाना अभी शुरु किया है।’
‘प्रतीक्षा के लिए धन्यवाद!’ उसने कुर्सी पर बैठते हुए कहा और प्लेट आगे कर ली। लिली ने साग का कटोरा पकड़ाते हुए कहा, ‘क्यों, आज कुछ गुस्से में हो, किसी से लड़ाई तो नहीं हुई?’
‘हो सकता है।’ उसने सागर की ओर देखते हुए उत्तर दिया। सागर सिर नीचा किए चुपचाप खाने में तल्लीन था।
‘जीता कौन?’
‘मैं।’
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