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घाट का पत्थर

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9564
आईएसबीएन :9781613013137

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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।

‘जी। मैं कुछ दिनों से अपने चाचा के घर पूना गई थी, नहीं तो मैं प्रायः लिली के घर आती रहती हूं।’

‘आप क्या लिली के साथ पढ़ती हैं?’

‘पढ़ती थी, परंतु अब पढ़ाई छोड़ चुकी हूं। एफ.ए. करने के बाद मैंने एक म्यूजिक कॉलेज में संगीत सीखना आरंभ कर दिया है। वास्तव में मुझे संगीत बहुत प्रिय है, इसी कारण पढ़ाई भी पूरी नहीं कर सकी।’

‘तब तो बहुत प्रसन्नता की बात है। फिर तो कभी....।’

‘क्यों? प्रसन्नता की क्या बात है?’ लिली ने कमरे में आते ही पूछा।

‘माला के संगीत के विषय में।’

‘गाती भी बहुत अच्छा है और सितार तो इतना अच्छा बजाती है कि तुम सुनकर दंग रह जाओ।’

‘तो आज एक गाना सुना दीजिए।’ दीपक ने प्रार्थना भरे स्वर में कहा।

‘आज नहीं फिर कभी। आज कुछ मूड नहीं है।’

‘अच्छा कोई बात नहीं, परंतु भूलिएगा नहीं।’

‘क्यों लिली, तुम इतवार को चल रही हो या नहीं?’ माला ने लिली को संबोधित करके कहा।

‘अभी डैडी से पूछा नहीं है।’

‘तो डैडी ने क्या कहना है?’

‘फिर भी पूछना तो अवश्य है।’

‘क्यों कहां जाना है?’ दीपक बीच में बोल उठा।

‘इतवार को माला, मैं और कुछ अन्य सहेलियां पूना ‘रेसिज’ पर जा रही हैं। हम लोग सोमवार सवेरे लौटेंगे। रात को माला के चाचा के घर ठहरेंगे। समझो कि एक प्रकार का पिकनिक-सा रहेगा।’

‘प्रोग्राम तो बहुत अच्छा है।’ दीपक ने कहा।

‘तो आप भी चलिए न।’ माला ने अनुरोध किया।

‘जाने में तो कोई आपत्ति नहीं, परंतु....।’

‘किंतु परंतु क्या एक अच्छा मनोविनोद रहेगा।’

‘आप सब लड़कियों में मेरा जाना कुछ अच्छा नहीं जान पड़ता।’

‘आप इसकी चिंता न करें।’

‘मेरी ओर से कोई आपत्ति नहीं, सब लिली पर निर्भर है।’

‘तुम अपनी इच्छा के स्वयं स्वामी हो, इससे मेरा क्या।’ लिली ने उत्तर दिया, जो अभी तक चुपचाप दोनों की बात सुन रही थी।

‘मेरा मतलब यह है कि जब डैडी से अपने लिए पूछोगी, उसी समय मेरे लिए भी आज्ञा ले लेना।’

‘परंतु तुम्हें पूछते क्या लाज आती है?’

‘ऐसी बात नहीं। मैं तुम्हें कहीं साथ ले जा रहा होता तो आज्ञा ले लेता।’

‘अच्छा ले भी लेना लिली, आप दोनों तो लंबी-चौड़ी बहस में पड़ गए।’ माला ने लिली के कहा।

और दोनों उठकर बरामदे में चली गई। दीपक अंदर चला गया।

‘प्रोग्राम तो पक्का ही है न लिली, तुम्हारे डैडी मना तो नहीं करेंगे?’माला ने लिली का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा।

‘मना क्यों करने लगे? केवल उनके कानों से बात निकलनी है और तुमने दीपक का यह नया प्राग्राम बना दिया?’

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