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घाट का पत्थर

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :321
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9564
आईएसबीएन :9781613013137

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लिली-दुल्हन बनी एक सजे हुए कमरे में फूलों की सेज पर बैठी थी।

‘दीपक एक काम करो।’

‘कहो लिली।’

‘तनिक समीप आ जाओ।’

दीपक उठा और लिली के पीछे जा खड़ा हुआ।

लिली बोली, ‘जरा पीछे से मेरी कमीज के बटन बंद कर दो।’

‘मेरा विचार है कि तुम भविष्य में इस प्रकार के कामों के लिए एक आया का प्रबंध कर लो....।’ दीपक ने लिली की कमीज के बटन बंद करते हुए कहा।

‘मुझे ज्ञात न था कि छोटे-छोटे काम करने से तुम्हारे हाथ थक जाते हैं।’

‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं परंतु तुम्हारे और मेरे बीच आवश्यकता से अधिक स्वतंत्रता अच्छी नहीं और फिर तुम भी तो यह पसंद नहीं करती कि मैं....।’

‘यह ठीक है कि मैंने तुम्हें उस दिन किसी बात के लिए मना कर दिया और तुम भी भली प्रकार समझते हो कि वह तुम्हारी भूल थी।’

‘मेरा तो विचार है कि मैंने तुम्हें मांगकर कोई भूल नहीं की। फिर भी यदि तुम समझती हो कि यह कहकर मैंने तुम्हारा दिल दुखाया है तो मैं इसकी क्षमा चाहता हूं। इससे अधिक मैं और क्या कर सकता हूं?’

‘इसमें बुरा मानने की क्या बात है? यदि मेरे हृदय में कोई संदेह होता तो मैं तुम्हें किसी भी काम के लिए क्यों कहती? मेरी दृष्टि में तुम अब भी वैसे हो जैसे कुछ दिन पहले थे।’

‘लिली, क्या तुम ठीक कह रही हो? तुम्हारे हृदय में मेरे लिए उतना ही आदर और स्नेह है जितना पहले था?’

‘मुझे झूठ बोलने की आदत नहीं। चलो जल्दी चलो। देर हो रही है।’

यह कहकर लिली दरवाजे की ओर बढ़ी। दीपक भी उसके पीछे हो लिया। थोड़ी देर बाद दोनों सड़क पर पहुंच एक ओर चल दिए। लिली मौन थी। दीपक चाहता था कि वह कुछ बात और करे तो वह उसके सब संदेह दूर कर दे। वह नहीं चाहता था कि उसके कारण लिली अथवा उसके डैडी को किसी प्रकार का क्लेश हो, परंतु लिली मौन रही। उसने कोई बात नहीं की।

दीपक ने लिली को उसकी सहेली के घर पहुंचा दिया और सिनेमा चला गया। उसे ऐसा जान पड़ा मानो उसके हृदय पर से एक भारी बोझ उतर गया है।

इसी प्रकार दिन बीतते गए। लिली और दीपक फिर से आपस में घुल-मिल गए। लिली पहले से भी अधिक उसका ध्यान रखने लगी। दोनों एक-दूसरे का दिल बहलाने का पूरा प्रयत्न करते।

एक दिन सायंकाल के समय जब वे दोनों अकेले बगीचे की घास पर बैठे ताश खेल रहे थे, दीपक से रहा न गया और वह बोल पड़ा, ‘लिली एक बात पूछूं?’

‘अवश्य। एक नहीं, दो।’

‘विश्वास दिलाओ कि तुम उसका उत्तर ठीक-ठीक दोगी।’

‘अपनी ओर से तो पूरा प्रयत्न करूंगी।’

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