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गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

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आज…. प्रेम किया है हमने….


गंगा ने सुना पर वो मतलब नहीं समझ पाई।

‘‘तोसे कितना चक्कर कहेन कि हमार अँग्रेजी जरा कमजोर है! हिन्दी मा बोलो जौन कहेक है‘‘ गंगा ने इच्छा जताई।

‘‘गंगा! ....क्या मुझे मिल सकता है ...एक चुम्मा?‘‘ देव ने पूछा धीमे स्वर में डरते-डरते।

गंगा ने आँखे दिखाई।

‘‘प्लीज! प्लीज! प्लीज! ...जानू!‘‘ देव ने आग्रह किया।

‘‘नहीं‘‘ ।

‘‘ प्लीज! प्लीज! प्लीज! ...हलवाइन‘‘ देव ने फिर से आग्रह किया।

‘‘नहीं‘‘ गंगा ने मना कर दिया।

‘‘प्लीज! प्लीज! प्लीज! .....हलवाइन, सिर्फ और सिर्फ मेरी हलवाइन‘‘ देव ने फिर से कहा बड़े प्यार से।

फिर! फिर! फिर! ...फिर क्या हुआ? मेरी जिज्ञासा बहुत बढ़ गयी ये सब देखकर....

फिर सख्त मिजाज गंगा का दिल पिघल ही गया।

दो लोग पास आये, दो आँखे पास आयीं, दो लब पास आये, दो नाकें पास आईं ....

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