लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

184 पाठक हैं

आज…. प्रेम किया है हमने….


‘‘हाँ! हाँ! गाओ गाओ! मगर धीमी आवाज में‘‘ वो बोला -

मंगल! मंगल! मंगल! मंगल!
मंगल! मंगल!... हो!....
मंगल! मंगल! मंगल! मंगल!
मंगल! मंगल!... हो!....
जागे नगर सारे! .... जागे है घर सारे!
जागा है.... अब हर गाँव ...
जागे है फूल .... और जागी है कलिया!
और जागी है ... पेडों की छाँव ......
मंगल! मंगल! मंगल! मंगल! ....
मंगल! मंगल!... हो! ......
मंगल! मंगल! मंगल! मंगल! ....
मंगल! मंगल!... हो……!

पूरा क्लास रूम तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। मैंने सुना……

0

‘‘गायत्री देखो! मेरी कहानी अखबार में आयी है!‘‘ देव ने गायत्री. को कहानी दिखाई

ये पहला मौका था...जब देव की कहानी अखबार में छपी थी।

‘‘बढि़या!‘‘ गायत्री. को भी खुशी हुई जब उसने कहानी पढ़ी।

‘‘देव! तुम कहानी कैसे लिख लेते हो? गायत्री ने पूछा।

‘‘बस ऐसे ही सोचते-सोचते‘‘ देव बोला।

पतली दुबली श्रीदेवी मतलब गायत्री मुस्करायीं। गायत्री के गोरे-गोरे गालों में गढ्ढे पड़े। मैंने देखा...

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai