ई-पुस्तकें >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘जी! पण्डित जी!’’ देव ने एक बार फिर से सिर हिलाया।
‘‘आज के बाद अपने जीवन के सभी निर्णय अपनी पत्नी से विचारकर लोगे! क्या तुम्हें स्वीकार है?’’
‘‘हाँ!‘‘
आज के बाद जीविकोपार्जन के लिए कमाये हुऐ धन को अपनी पत्नी से विचारकर खर्च करोगे! क्या तुम्हें स्वीकार है?’’
‘‘हाँ!‘‘
‘‘आज के बाद तुम देश-परदेस, जिस दिशा में भी यात्रा करोगे सदैव अपनी पत्नी को अपने साथ रखोगे! क्या तुम्हें स्वीकार है?’’
‘‘हाँ!‘‘
‘‘आज के बाद पूजा, हवन, यज्ञ आदि सभी धार्मिक कार्य अपनी पत्नी के साथ ही करोगे! क्या तुम्हें स्वीकार है?’’
‘‘हाँ!‘‘
‘‘आज के बाद सुख-दुख, भाग्य-दुर्भाग्य, अमीरी-गरीबी, रोग-स्वास्थ्य, जीवन के हर उतार-चढ़ाव में सदैव अपनी पत्नी का साथ निभाओगे! उसका पालन करोगे! कभी उसका साथ नहीं छोड़ोगे! क्या तुम्हें स्वीकार है?’’
हाँ!‘‘ देव ने सिर हिलाया।
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