लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

184 पाठक हैं

आज…. प्रेम किया है हमने….


‘‘हमार मरै के बाद हमार दुकनियाँ बन्द हुई जायी! यही एक अफसोस है हमका!‘‘ गंगा का बाबू बोला धीरे-धीरे लेकिन भारी शब्दों में।

‘‘....अगर भगवान एक लड़का दई देत तो कम से कम हमार नाम तो चलत!‘‘ साठ वर्षीय गंगा का बाबू फिर बोला। ये कहते हुए उसकी आँखें मारे दुख के नम हो गईं।

गंगासागर हलवाई के मरने के साथ ही उनकी दुकान बन्द हो जाएगी। ‘‘गंगासागर मिष्ठान भण्डार‘‘ पर ताला लग जाएगा और गंगा के बाबू का नाम हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। यही दुख उसे बार-बार खाये जा रहा था। अब सभी ने ये जाना। देव ने भी....

गंगा के बाबू को देखकर सभी लोग कुछ समय के लिए सोच में पड़ गये कि आखिर कैसे उनको दिलासा दिया जाये? कैसे समझाया जाये?। तभी देव को कुछ उपाय सूझा....।

‘‘बाबू!‘‘ देव ने आत्मविश्वास भरे शब्दों में कुछ कहना शुरू किया।

‘‘....अगर ऐसा हो कि हम रानीगंज में बस जाएं और आपकी दुकान चलाऐं तो?‘‘ देव ने विनम्र लेकिन दृढ़ शब्दों में पूछा।

गंगा का बाबू और अम्मा दोनों चौंक पड़े ये सुनकर। कुछ सेकेण्ड तक तो वो कुछ समझ ही नहीं पाये।

‘‘तोहार मतलब?‘‘ गंगा के बाबू ने पूछा बड़े आश्चर्य से अचरज के साथ अपनी दोनों पलकें झपकाते हुए।

‘‘मतलब कि हम एक हलवाई बनना चाहते हैं!‘‘ देव ने इच्छा प्रकट की।

गंगा का बाबू और अम्मा दोनों चौंक पड़े ये सुनकर।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय