लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

184 पाठक हैं

आज…. प्रेम किया है हमने….


‘‘वो तो बेचारी बच्ची है!‘‘ उसे तो यह भी नहीं पता कि सूरज किस दिशा में निकलता है? वो क्या जादू करेगी हम पर?‘‘ देव ने रोते-रोते भरे हुए गले से कहा..... संघर्ष करते हुए।

‘‘वो तो बहुत भोली है! बहुत सीधी!

‘‘वो कोई लड़की वड़की नहीं है! हमें उसके अन्दर अपना रब दिखाई देता है, अपना खुदा दिखाई देता है!‘‘

हमें उसके अन्दर अपना भगवान दिखाई देता है!‘‘

सावित्री देव को एक जोर का थप्पड़ मारने के लिए लपकी.... इस भगवान वाली बात को सुनकर।

‘‘हाँ! हाँ! मार दो मार दो हमें! वैसे भी हमारी जिन्दगी मे रखा ही क्या है? गंगा ने तो हमसे बात करना वैसे ही बन्द कर रखा है! उससे अच्छा तो हम मर ही जाये!‘‘ देव बोला रोते-रोते... अपने आँसुओं को अपने शर्ट के आस्तीन से पोछने हुए।

‘‘भाभी! जवान लड़के पर हाथ छोड़ोगी? मामी बीच में आ गयीं। उन्होने सावित्री का हाथ पकड़ लिया।

चलो! चलो!... चलो यहाँ से!‘‘ मामी सावित्री को दूसरे कमरे मे खीच ले गई।

फिर आकर दीवार साफ करने लगी तौलिये को पानी मे भिगोकर। घर का माहौल काफी गरमा गया जैसे कूकर मे 4-5 सीटी लग गयी हो।

भाई! ये प्यार-व्यार तो बिल्कुल टोरनैडों तूफान बन कर किसी का भी घर आसानी से तोड़ सकता है। मैंने महसूस किया.....

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai