ई-पुस्तकें >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘गुड़िया... नाराज हो?‘‘ देव गुड़िया से मिलने गया। पर गुड़िया ने जवाब न दिया। गुड़िया अब भी देव से बहुत नाराज थी। मैंने नोटिस किया....
गुड़िया नहा चुकी थी। अब वो श्रृंगारदान के सामने बैठकर अपने बालों में कंघी कर रही थी। कोकोनट आँयल की खुश्बू सारे कमरे में फैली हुई थी... महक बनकर। गुड़िया श्रृंगारदान के सामने बैठकर मुँह फुलाये बेमन से अपने बालों में कंघी कर रही थी।
‘‘देखो! कल जो मैं तुम पर चिल्लाया उसके लिए सॉरी!‘‘ देव ने धीमें स्वरों में माफी माँगी।
‘‘ये पहली बार है जब मै किसी लड़की पर चिल्लाया हूँ!‘‘ देव ने सफाई दी।
गुड़िया ने कोई जवाब नहीं दिया और मौन बनकर अपने बालों में कंघी करती रही। जैसे उसने देव को सुना ही नहीं। देव श्रृंगारदान के आगे आ खड़ा हुआ। एक स्टूल खींचा और गुड़िया के जस्ट सामने बैठ गया। गुड़िया अब खुद को सीसे में नहीं देख पा रही थी। मैंने देखा....
‘‘गुड़िया मेरी बात सुनो!‘‘ देव ऊँची आवाज में बोला। उसने तेजी से गुड़िया के दोनों हाथ पकड़ लिये। कंघी नीचे गिर गयीं जमीन पर।
‘‘आई कान्टैक्ट प्लीज!‘‘ देव ने जोर देकर कहा। आखिरकार गुड़िया ने देव से नजरें मिलायी लेकिन बेमन से।
‘‘तुम बहुत सुन्दर हो! सच में‘‘ देव ने गुड़िया की तारीफ की।
‘‘तुम्हारा व्यवहार बहुत अच्छा है!
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