ई-पुस्तकें >> गंगा और देव गंगा और देवआशीष कुमार
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आज…. प्रेम किया है हमने….
‘‘बस! बहुत खा लिया मामी! अब नहीं!‘‘ देव ने बहुत मना किया और अपनी प्लेट लेकर दौड़ा पर गीता मामी ने एक नहीं सुनी और जबरदस्ती स्पाइसी फ्राइड मछली के कुछ पीस देव की प्लेट में रख दिये।
‘‘मामी! आई लव यू!’ देव बोला मस्ती से झूमकर।
सच में खाना बहुत टेस्टी है!‘‘ देव ने भी तारीफ की। मामी से मुस्कराकर सिर हिलाया
अब सभी खाना खा चुके थे। अब सभी उठने वाले थे।
‘देव....’ सावित्री ने देव को बड़े प्यार से पुकारा धीमी आवाज में।
‘मैंने आज तुम्हारे डैडी को कानपुर टेलीफोन किया था... वो कह रहे थे कि अगर तू बीएड वाला कोर्स करले तो तुझे.... मास्टरी वाली नौकरी मिल जाएगी। तब तुझे अपनी किताबे पढ़ने का भी समय मिल जाएगा! ... और बेटा सबसे अच्छी बात है कि तुझे नौकरी यही गोशाला में ही मिल जाएगी! ..... तब मैं तेरे पास रहने का सुख पा सकूँगी!’ सावित्री ने बड़ी प्यार से देव से कहा उसे पटाते हुए।
‘बेटा! शादी-वादी मत कर!.... पर कम से कम ये कोर्स तो कर ले!’ फिर सावित्री बोली।
देव ने सुना।
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