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गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

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आज…. प्रेम किया है हमने….


एक महीने बाद

सोलह सोमवार

सोमवार का दिन। सुबह के नौ बजकर पन्द्रह मिनट। गोशाला।

’’टिन-टिन ...टिन-टिन!’’ सावित्री के कमरे में लगे टेलीफोन ने शोर किया।

‘हैलो? देव की माँ सावित्री ने रिसीवर उठाया।

‘‘आँन्टी नमस्ते! मैं देव की फ्रैंड गायत्री!‘‘ गायत्री ने अपना परिचय दिया।

‘‘हाँ! हाँ! देव हमेशा तुम्हारे बारे में बात करता है! कहता है कि तुम लोग टीईटी की तैयारी साथ में कर रहे हो?‘‘ सावित्री ने पूछा।

‘‘हाँ आँन्टी!‘‘ गायत्री धीरे स्वर में बोली।

‘‘हम लोग साथ में ही तैयारी कर रहे हैं!‘‘ गायत्री ने जवाब दिया।

तभी सावित्री को देव की खराब हालत का खयाल आया....

‘‘गायत्री! बेटी!‘‘ सावित्री ने गायत्री को बड़ी प्यार से सम्बोधित किया बहुत अपनेपन के साथ जैसी गायत्री खुद उसकी बेटी हो।

‘‘मैं तो देव से तंग आ गयी हूँ!‘‘सावित्री झुंझला गई थी।

‘‘ये लड़का ना कुछ खाता है.... ना पीता है! सारा दिन रोता रहता है! खिड़की के पास बैठा रहता है! ‘वो आएगी! वो आएगी!‘ बस यही रटता रहता है!‘‘ सावित्री ने सच-सच बिना किसी मिलावट के गायत्री को अपना दुखड़ा सुना दिया।

‘‘जी!‘‘ गायत्री ने सुना। ये सब बोलते-बोलते सावित्री रोआँसी हो गयी। इस कारण गायत्री जी से आगे कुछ ना बोल सकी। मैंने गौर किया...

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‘‘गायत्री! बेटी! एक बात तो जरा बता! क्या ये ‘गंगा‘ क्या बहुत सुन्दर है? क्या बिल्कुल हीरोइन जैसी दिखती है? जो देव इसके पीछे बौरा गया है? ये पहली बार है कि देव ने किसी लड़की से शादी की इच्छा जताई है!‘‘ सवित्री ने पूछा।

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