लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> गंगा और देव

गंगा और देव

आशीष कुमार

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :407
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9563
आईएसबीएन :9781613015872

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

184 पाठक हैं

आज…. प्रेम किया है हमने….


‘‘तोसे कहत रहेन कि एका पढ़ै-वढ़ै ना भेजो! पर तू हमार बात नाई सुनिउ!

वैसे भी पढ़ाई भी कौन जरूरत है एके लिए?

सारी जिन्दगी तो एका लड्डू ही गोलियाएका है!‘‘ गंगासागर हलवाई बोला बीच में ही अपनी पत्नी रुकमणि की बात काटते हुए।

‘‘बिटिया! का देव भी एक हलवाई है?‘‘ फिर गंगा की माँ ने पूछा बड़े प्यार से।

‘‘नहीं!‘‘ गंगा ने सच-सच बताया।

‘‘.....पर देव बहुत अच्छे घर से है! उ लोग बहुत अमीर हैं! देव पढ़ाई मा बहुत होशियार है, उ दिल्ली से पढ़के आवा है! ओके अँग्रेजी बहुत नीक है!‘‘ गंगा बोली अपनी शुद्ध घरेलू रानीगंज की भाषा में देव के बारे में बताते हुए। गंगा ने घर में बताना चाहा कि देव एक अच्छा लड़का है।

पर ये क्या? दिल्ली का नाम सुनते ही गंगा का बाबू गंगासागर हलवाई एक बार फिर से भड़क गया।

‘‘अरे बिटिया! दिल्ली तो बहुत खराब जगह है! जौन-जौन दिल्ली गवा है उ बर्बाद हुई के लौटा है, यही मारे तो हम कभ्भो दिल्ली की ट्रेन नाई पकड़ा!‘‘ वो बोला।

अपनी 60 साल की जिन्दगी में गंगा का बाबू कभी रानीगंज से बाहर नहीं गया था। अपनी बड़ी सी हलवाईयों वाली दुकान के चक्कर में उसे रानीगंज से कभी निकलकर बाहर पर्यटन करने का कभी मौका ही नहीं मिला। इसके अलावा गंगा का बाबू जो सिर्फ 8 तक ही पढ़ पाया था, हर आधुनिक चीज से डरता था। खासकर ट्रेनों से। आसमान में उड़ते हुए हवाई जहाजों को देखकर वो तुरन्त अपनी दुकान के भीतर दुबक जाता था कि कहीं ऐसा ना हो कि हवाई जहाज उसके ऊपर ही गिर जाये। मैंने ये भी जाना...

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai