ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
‘अब ये क्या है?’ मैंने रंगीन कागज से लिपटे उस छोटे बाक्स को हाथ में लिया।
‘पता नहीं, कह रही थी कि ये अंश के लिए है।’ कहते हुए वो मेज पर लेट सा गया।
‘उसे वापस लौटा आ।’
‘हद है यार! कम से कम खोल कर देख तो ले लौटाने से पहले!’
‘मुझे चाहिये ही नहीं....’
‘इतनी खूबसूरत सी लड़की तुझे कुछ दे रही हैं और तू है कि! एक तोहफा खोलकर देखने में तो कोई बुराई नहीं है ना?’
मुझे भी कोई बुराई नजर नहीं आयी।
‘अगर चॉकलेट्स निकली तो तुझे ही खिलाऊँगा।’
मैंने वो बाक्स खोल दिया।
‘माए गॉड! यूनाईटेड कर्लस ऑफ बेनैटेन!’
ये तोहफा वाकई कीमती था, काले रंग के डायल वाली एक खूबसूरत सी घड़ी। समीर ने उसे लेकर अपनी कलाई पर लगा लिया।
‘मैंने कहा था न शी इज प्रिन्सेज!’
समीर के बाद उसे एक बार मैंने भी अपनी कलाई पर लगा कर देखा। एक बार मन हुआ कि रख लेता हूँ लेकिन फिर ना जाने क्यों मैंने उसे वापस उसके डिब्बे में रख दिया।
‘जा, उसे लौटा दे।’
बाक्स फिर समीर के हाथ में था।
‘अंश वो पैसे नहीं माँग रही इसके।’
‘ये चीपनैस है समीर।’
‘चीपनैस ये नहीं है लेकिन जब तू उसके इतने प्यारे से तोहफे को लौटायेगा तो वो चीपनैस जरूर होगी।’
‘तू लौटा रहा है?’
‘तेरे बाप का नौकर हूँ मैं? खुद जाकर लौटा दे।’ समीर चला गया।
उस वक्त घड़ी को अपने पास रखने के अलावा और कोई चारा नहीं था, सो मैंने रख ली। सोचा था कि मौका मिलते ही खुद लौटा दूँगा।
अगली सुबह मैं क्लास में थोड़ा जल्द पहुँच गया। क्लास की सारी भीड़ प्रार्थना स्थल की तरफ जा रही थी और मैं प्रीती का दिया तोहफा हाथ में लिये उसके आने का इन्तजार कर रहा था। वो सबसे आखिर में आने की आदी थी। कुछ पन्द्रह बीस मिनट में किसी के कदमों की आहट ने मुझे पिछले दरवाजे की तरफ घुमा दिया।
‘गुड मार्निंग।’
ये प्रीती ही थी....मुझे क्लास में खड़ा देखकर एक पल को हैरान सी रह गयी। एक झटके से उसने अपने कानों पर लगे एयर पीस खींचे।
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