ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
30
शाम करीब पौने सात बजे।
सन्तरी रंग का सूरज लगभग आधा डूब चुका था। रेत के साथ तपती हवा में भी हल्की ठण्डक घुलने लगी। बीच के एक भीड़ भरे कोने पर, कैमरे के सामने मैं और यामिनी एक बार फिर अपनी लाइन्स दोहराने को तैयार थे। कितनी बुरी तरह मुझे एहसास हो रहा था कि एक्टिंग कितना मुश्किल काम है। सच में, ये सब देखने में जितना आसान लगता है उतना होता नहीं। बार-बार एक ही एक ही लाइन दोहराते हुए मैं थक गया लेकिन डायरेक्टर साहब को अब तक वो नहीं मिला था जो उसे चाहिये था।
यामिनी बड़ी आसानी से अपनी लाइन्स बोल पा रही थी, उसे आदत थी इस काम की लेकिन मेरे लिए ये बिल्कुल नया काम था। किसी दूसरे के दिमाग में जो सीन है, उसे हम कैसे देख सकते हैं? पता नहीं डायरेक्टर साहब अपनी सोच को ठीक से समझा नहीं पा रहे थे या मैं उन्हें समझ नहीं पा रहा था लेकिन अपनी 12वीं कोशिश में भी चूक गया।
मिस्टर सेन अपना सन्तुलन खो गये।
‘अरे भगवान के लिए कुछ करो अंश! मैं हाथ जोड़ता हूँ तुम्हारे आगे।’ उनके दीन से चेहरे के भाव यामिनी की तरफ मुडते ही कठोर हो गये। ‘यामिनी?’ उन्होंने उसे यूँ देखा मानों पूछ रहे हो कि क्या सोच कर तुम इस लड़के को लायी हो?
यामिनी ने उनसे एक छोटा सा ब्रेक माँगा और मुझे वहाँ से कुछ कदम दूर ले आयी। वो मुझे मेरी लाइन्स बोल कर दिखाना चाहती थी। मुझे सिखाना चाहती थी कि किस तरह ये एक्ट पूरा करूँ।
जब वो मेरे सामने एक्ट कर रही थी, मैं उसे पूरे ध्यान से देख रहा था लेकिन सच में....सच में मुझे पता नहीं चला कि वो क्या कर रही है? क्या कह रही है? मेरा दिमाग इस सब पर था ही नहीं। मैं तो बस उसी में डूबा था। उसकी झिलमिलाती ग्रे ड्रेस की लचक में, उसके लम्बे-कत्थई बालों के घुमाव में, उसके सुनहरे चेहरे की आभा में, काजल से तराशी उसकी बड़ी बड़ी जादुई आँखों में। सिवाय इसके मैं कुछ और नहीं समझ सका।
‘समझ गये?’ उसने एक्ट खत्म करते ही पूछा। बड़े ही यकीन और मासूमियत से।
मैंने कुछ बोलने के लिए होठ खोले मगर कुछ बोल ना सका। बस उससे नजरें फेर कर, अपने हाल पर मुस्कुराते हुए मैं वहाँ से चल निकला।
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