लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

347 पाठक हैं

जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

‘क्योंकि मेरा एक भाई है मुम्बई में, जो मॉडलिंग एजेंसीं में नौकरी करता है। बोल जायेगा? ‘ समीर ने पूछा।

‘तुझे पता है ना कितना होशियार हूँ मैं पढ़ायी में? माँ कभी इजाजत नहीं देंगी, उन्हें तो मेरा पेंन्टिग करना भी पसन्द नहीं है। मुझे किसी भी तरह पहले पढ़ाई पूरी करनी है, अपने परिवार का सहारा बनना है जितना जल्द हो सके।’

पिताजी के अचानक देहान्त के कुछ साल बाद तक मैंने और मेरे परिवार ने जो दिन काटे थे वो मेरी जिन्दगी के सबसे कठिन और महत्वपूर्ण दिन थे। जहाँ अंश की नींव पड़ीं। मेरी उम्र वहाँ तक पहुँची थी जहाँ एक इन्सान के दिल दिमाग का ढांचा तैयार होता है, जहाँ वो दुनिया को समझने की कोशिश करता है और मैं इसे जितना समझ सका, ये एक ऐसी जगह है जहाँ या तो आप खुद खुश रह सकते है या फिर समाज को खुश रख सकते हैं।

जब तक पिताजी जिन्दा थे हमारा बचपन सुकून और समृद्धि से भरा हुआ था लेकिन उनकी मौत के साथ क्योंकि सारे रिश्तेदार भी मर गये इसलिए माँ को खुद ही खड़ा होना पड़ा हमारी जिम्मेदारी उठाने के लिए। घर मम्मी की नौकरी से चलता था जिनको पापा की जगह पर नौकरी मिली थी। उनकी तनख्वाह का एक हिस्सा कुछ समय तक उसके सीनियर मैनेजर को जाता रहा, जिसकी सिफारिश ने माँ को ये नौकरी दिलाने में मदद की। शिमला जैसी छोटी-सी जगह पर, बहुत छोटी उम्र में, मैंने लोगों की छोटी सोच का एक छोटा-सा नमूना देख लिया था, कि एक नौकरी पेशा औरत के लिए दुनिया की सोच क्या होती है और ये भी कि किसी भी तरह की सफाई देने से दुनिया की सोच आपके लिए साफ नहीं हो जाती। आप क्या हैं और क्यों हैं ये सिर्फ आप और सिर्फ आप की ही परेशानी है इसलिए मैंने अपनी माँ के अलावा किसी और को कभी ये अधिकार नहीं दिया कि मुझसे कोई सवाल कर सके।

मेरे अपनों के दायरे में मेरी माँ और दो छोटी बहने रेनू, गति के अलावा कुछ चुनिंदा दोस्त आते थे। बस यही मेरी दुनिया थी।

हम स्कूल के गेट पर पहुँचे ही थे कि समीर ने पिछले दिन के समाचार सुनाने शुरू कर दिये।

‘ऐ अंश कल तू नहीं आया था न, पता है दो नये चेहरे आये हैं स्कूल में। एक तो ठीक-ठाक ही दिखती है लेकिन वो जो दूसरी है न उसकी सहेली, उसे देख ले तो मुँह कड़वा हो जाता है।’

‘क्यों? ‘

‘पता नहीं यार क्या खा के आती है? हमेशा मुँह चढ़ा रहता है उसका।’

‘क्या नाम है उन दोनों का?’

‘एक तो प्रीती है और दूसरी का पता नहीं।’ समीर ने याद करने की कोशिश की।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book