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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

भाग्यवश मैं इस बार मैं दोषी नहीं था लेकिन सिर्फ इतनी तसल्ली काफी नहीं थी जिन्दगी को आगे बढ़ाने के लिए। सोनू ने अगर एक बार ये कदम उठा लिया था तो वो दोबारा भी उठा सकती थी। इस शहर मैंने गँवाया ही गँवाया था और मैं कुछ और खो देने की हालत में नहीं बचा था। मुझे कोई रास्ता निकालना था जिससे मैं सोनू को खुश रख पाता... कम से कम जिन्दा तो रख पाता।

‘तुम जानना नहीं चाहतीं कि वो रिकार्ड़िंग कैसे बनी?’

‘अंश मैं मानती हूँ कि तुम्हारी आवाज में वो सब सुनना बहुत तकलीफदेय था लेकिन ऐसा करने की सिर्फ एक वो ही वजह नहीं थी...’

‘जानता हूँ कि सिर्फ ये ही वजह नहीं रही होगी। और भी बहुत कुछ होगा तुम्हारे पास।’ मैं फिर चुप हो गया। एक रास्ता अचानक ही मिल गया मुझे। पहले तो यही लगा कि ये मुमकिन नहीं है लेकिन मुझे इसे मुमकिन करना ही था। मन ही मन एक फैसला करके मैंने उसकी तरफ देखा। ‘एक बार फिर सोच लो हो सकता है कि तुम्हें आगे चलकर ये सवाल परेशान करे कि मैंने वो सब क्यों कहा?’

‘मेरा यकीन करो अंश मुझे इस सवाल से कोई मतलब न है, न होगा!’ सोनू कोई यकीन दिलाना चाहती थी मुझे लेकिन अब यकीन पर से यकीन टूट चुका था मेरा।

‘अच्छी बात है।’

मैंने उसका हाथ एक बार अपने हाथों में लेकर चूमा। मेरी साँस गहरा गयी, मैं कुछ मुश्किल... बेहद मुश्किल कहने वाला था।

‘सोनू मैं जानता हूँ कि एक फ्लर्ट पर यकीन करना वाकई नामुमकिन होता है.... और उसके साथ जिन्दगी बिताना तो... कोई सोच भी नहीं सकता शायद।’ मैं खुद पर हँस पड़ा। ‘तुम्हारे डैड सही हैं। तुम्हें मुझसे कहीं बेहतर इन्सान मिलना चाहिये...’

‘अंश प्लीज....’ किसी चुभन ने फिर उसके चेहरे पर बैचेनी को बढ़ा दिया लेकिन मेरे चेहरे पर सुकूनभरी मुस्कुराहट थी।

‘मेरी जिन्दगी में आने के लिए शुक्रिया। जो गलतियाँ मुझसे हुई उनके लिए सॉरी। और अब तुम यहाँ से अपने डैड के साथ उन्हीं के घर जा रही हो।’

‘पापा के साथ?’

‘हाँ।’

‘क्या मतलब?’ वो छटपटा गयी! एक बार मेरी तरफ सवालिया सी नजर से देखा और फिर संजय की तरफ! लेकिन वो न जाने क्यों सिर झुका कर बाहर चला गया।

‘मैं तुम्हें समझा नहीं सकता। बॉय।’ उसके सिर पर एक बार हाथ फेर कर मैं भी चलने के लिए उठ गया।

‘आप यामिनी को वापस लाना चाहते हैं?’ उसने पूछा लेकिन मैंने कोई जवाब न दिया। ‘अंश....!’ उसने मुझे रोका लेकिन मैं रुका नहीं।

वो मुझे तब तक आवाज देती रही जब तक मैं उसे दिखायी दे रहा था लेकिन मैं चलता ही रहा।

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