लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट

फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

Like this Hindi book 3 पाठकों को प्रिय

347 पाठक हैं

जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

116

जो खामोशी सारी रात गुजार गयी वो सुबह की कोमल किरनों के साथ टूटी।

अस्पताल की छत के एक कोने पर तन्हा खड़ा मैं उस सुबह को याद कर रहा था जब शिमला से मुझे पहली बार मुम्बई आना था। ये सुबह भी उतनी ही भारी थी। मैं यकीन ही नहीं कर पा रहा था कि इतनी जल्द मेरी जिन्दगी में इतना कुछ गुजर चुका है और जब तक यकीन कर पाता उससे पहले ही संजय का एक मैसेज मेरे फोन पर आया कि उसने आँखें खोल दी हैं।

मेरी साँसें लौट आयीं। मैं तेजी से नीचे भागा।

वार्ड के दरवाजे का धकेलने पर पता चला कि वो अन्दर से बन्द है। सब से पहले तो डॉक्टर्स उसे घेरे रहे, उसके बाद पुलिस ने सवाल जवाब किये। यहाँ तक कि राय साहब को भी 20 मिनट तक बाहर ही खड़े रहना पड़ा, सिर्फ मिसेज राय उसके सिरहाने पर एक कोने पर खड़ीं थीं।

जैसे ही डॉक्टर्स और पुलिस की भीड़ बाहर आयी और मैंने वार्ड की तरफ कदम बढ़ाया मिस्टर राय बीच में आ गये।

‘डोन्ट यू डेयर टू!’ किसी धिक्कारे हुए इन्सान की तरह उसने मुझे पीछे कर दिया।

‘अगर वो आता भी है तो उसमें गलत क्या है?’ मिसेज राय ने दखलअन्दाजी की लेकिन राय ने उनकी भी न सुनी और दरवाजा मेरे मुँह पर ही बन्द कर दिया।

इस बार मैंने भी आपा खो दिया। मैं भूल गया कि कितने, किस तरह के लोगों की भीड़ के साथ खड़ा हूँ। मैंने दरवाजा खोलने के लिए उस पर जोर से लात मारी! ‘खोल इसे यू....’

‘हे... अंश!’ संजय ने मुझे पीछे से आकर दबोच लिया। ‘ये क्या कर रहा है तू?’ उसने मुझे खींचकर दरवाजे से दूर किया और मेरा चेहरा वार्ड के अन्दर सोनाली की तरफ करते हुए- ‘कम से कम उसकी तरफ तो देख। ये जवाब देने का वक्त है क्या? उसकी हालत है कि तुम लोग उसके सामने ये सब नाटक कर रहे हो? उसे इस लायक तो हो जाने दे... प्लीज!’ उसने गुस्से में मेरे सामने हाथ जोड़ लिये।

अपनी बेचैनी अपने दिल में ही दबाये मैं संजय के साथ बाहर से ही उसे देख रहा था। सोनू की आँखें लगातार किसी को अपने आसपास ढूँढ़ रहीं थीं। वो भी शायद मुझसे बात करना चाहती थी लेकिन मिस्टर राय ने अपने परिवार के अलावा किसी और अन्दर आने की इजाजत नहीं दी। वो सबसे पहले खुद को ही तसल्ली कराना चाहते थे कि आखिर उनकी बेटी के साथ क्या हुआ था? वो सब कुछ सोनू के मुँह से ही सुनना चाहते थे और सोनू के हर अगले लफ्ज के साथ उसके चेहरे के भाव भी बदलते जा रहे थे, सन्देह.... क्रोध..... दुःख और आखिर में मायूसी!

जब उन्हें उनके सारे सवालों के जवाब मिल गये तो उन्होंने उतरे हुए मुँह के साथ खुद ही वार्ड का दरवाजा खोल दिया और बाहर चले चले गये। उनके बाद मिसेज राय भी उनके पीछे चल दीं। मेरे बगल से गुजरते हुए उन्होंने एक बार मेरे थके से कन्धे पर हाथ रखा और एक सिमटी सी लेकिन शुक्रगुजार मुस्कुराहट दी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book