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फ्लर्ट

प्रतिमा खनका

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :609
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 9562
आईएसबीएन :9781613014950

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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।

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सोनाली अब तक इस बात को भूली नहीं थी कि यामिनी मेरा पहला प्यार थी। उसे ये पता था कि मैं आजकल विचलित हूँ लेकिन उसकी वजह नहीं पता थी, ना ही उसे कोई सही जवाब मेरी तरफ से मिला इसलिए उसने अब खुद ही बात की जड़ पता लगाने की कोशिशें शुरू कर दीं।

मुम्बई सोनू का ही शहर था और यहाँ किसी के बारे में कुछ भी पता करना उसके लिए कोई मुश्किल काम नहीं था। यामिनी कहाँ रुकी है ये वो जान चुकी थी और उसने चार बार कोशिश की उससे मिलने की लेकिन यामिनी ने उसे निराश किया। न वो उसे मिली और न ही उसके किसी कॉल का जवाब दिया। अब उसके पास सिर्फ संजय ही एक चारा बचा था लेकिन उसने भी बातें घुमा देना ही सही समझा। आखिरकार सोनू को एजेन्सी में काम कर रहे अपने जासूसों से ही मदद लेनी पड़ी। बदकिस्मती से वो काफी कुछ जानता था। उसने सोनू को बता दिया कि यामिनी मुझसे मिलने आयी थी। इसके साथ ही ये भी बता दिया कि हम एजेन्सी से साथ साथ निकले, वो भी मेरी गाड़ी में।

ये सब सच था लेकिन इस सच का मतलब कुछ और था और सोनाली कुछ और समझ गयी।

उसी शाम।

मैं अपने फ्लैट में दाखिल हुआ। आज मैं उसे सब कुछ बता देने की हालत में था। मैं उससे बातें छुपा जरूर रहा था लेकिन इसलिए कि वो खुश रहे लेकिन वो इसी बात को अपनी उदासी की वजह बना चुकी थी।

उस शाम उसके आलिंगन में एक खालीपन था। उसका चेहरा कई सारे सन्देह के पीछे छुपा सा दिखायी दिया। सिवाय दो तीन शब्दों के वो कुछ कह ना सकी और मुझे लिविंग रूम में ही बैठाकर खुद कॉफी बनाने चली गयी।

यही वक्त था सब कुछ कह देने का।

कुछ पाँच मिनट में वो दोबारा मेरे सामने थी हाथों में कॉफी के दो मग पकड़े, एक भारी सी मुस्कान के साथ। वो नजरें चुरा रही थी।

मैंने दोनों मग उसके हाथों से लिये-

‘तुमसे कुछ बात करनी है।’ मैं बॉलकनी की तरफ चला गया। वो मेरे पीछे ही थी। बॉलकनी उसकी पसन्दीदा जगह थी खासतौर पर बात करने के लिए। खुली हवा.... चाँदनी और तारों की छुटपुट झिलमिलाहट। मैंने उसे कैनोपी पर बैठ जाने को कहा।

अपने होठों पर जीभ फेरते हुए भारी से लहजे में मैंने शुरू किया।

‘तुम्हें मुझ पर भरोसा है?’ एक मग उसके हाथ में दिया।

‘हाँ।’ उसने अपलक मुझे ताकते हुए वो मग हाथों में लिया।

‘तो तुम मुझसे कोई सवाल क्यों नहीं करतीं?’

‘क्या पूछना चाहिये मुझे’

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