ई-पुस्तकें >> फ्लर्ट फ्लर्टप्रतिमा खनका
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जिसका सच्चा प्यार भी शक के दायरे में रहता है। फ्लर्ट जिसकी किसी खूबी के चलते लोग उससे रिश्ते तो बना लेते हैं, लेकिन निभा नहीं पाते।
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उस निमन्त्रण पत्र को अपनी कोट के अन्दर की जेब में छुपाते हुए मैं यामिनी को चारों तरफ ढूँढ रहा था। वो पार्किंग के बाहर खड़ी थी। वो कॉल पर थी। मैं उसकी तरफ तेजी से गया।
‘इस मैसेज का क्या मतलब है?’ मेरा पहला सवाल था।
उसने इत्मिनान से कॉल काटी और मोबाइल पर्स में रखते हुए-
‘वो मुझे मिलना चाहती है और मैं तो तुम्हें सिर्फ से बताना चाह रही थी कि वो भी सीक्रेट रख सकती है।’
‘दैट्स फाईन। मैं उससे इस बारे में बात कर लूँगा लेकिन उससे पहले मुझे तुमसे बात करनी है।’ मैं अपनी गाड़ी बाहर ले आया और उसके सामने रुक कर एक दरवाजा उसके लिए खोल दिया।
‘तुम्हें कहीं छोड़ सकता हूँ?’
ये एक बादलों भरी शाम थी। हम दोनों को एक ही दिशा में जाना था। काफी दूर तक हम दोनों खामोश ही रहे। मैं तो जैसे भूल ही गया कि मुझे उससे कुछ बात भी करनी थी।
‘तुम्हें कुछ बताना था शायद।’ मैंने पूछा।
‘ओह हाँ! सोनाली की कॉल आयी थी कुछ दो या तीन दिन पहले। वो मुझसे मिलना चाहती है।’
‘हो सकता है वो वजह जानना चाहती है कि तुम हमारे घर क्यों आयी थीं।’
‘हो सकता है।’ उसे अधूरेपन से कहा।
‘और तुमने उसे क्या कहा ये.... मिलने को लेकर?’ इस सवाल पर थोड़ी घबराहट थी मुझे।
‘मैं यहाँ उसे मिलने नहीं आयी हूँ। मुझे कोई शौक नहीं है उससे मिलने का।’ उसने लापरवाही से कहा।
एक बार फिर हमारे बीच एक लम्बी खामोशी थी। वो बहुत शान्त थी। उसके चेहरे पर ही एक सन्तोष था अपनी जिन्दगी को लेकर। वो यकीनन खुश थी अपनी जिन्दगी में लेकिन फिर वो मेरी जिन्दगी का आराम क्यों हराम करना चाहती थी?
दर्जनों सवाल मेरे दिमाग में एक साथ उठ गये।
‘ये पार्टी अटेन्ड करने के अलावा और कुछ भी है जो तुम मुझसे चाहती हो?’
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